Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्म ग्रन्थ ध्रुवोदय कहा है। मोहनीय कर्म को मिथ्यात्व प्रकृति का उदयविच्छेद पहले मिथ्यात्व गुणस्थान के अंत में होता है। अतः पहले मिथ्यात्व गुणस्थान तक मिथ्यात्व का उदय ध्रुव होता है। इसीलिये यह ध्रुबोदय प्रकृति है।
इस प्रकार गाथा क्रमानुसार नामकर्म की १२, ज्ञानावरण को ५. अन्तराय की ५, दर्शनावरण की ४ और मोहनीय की १, कुल सत्ताईस प्रकृतियां ध्रुवोदय हैं। अब आगे की गाथा में अध्रुवोदय प्रकृतियों के नाम बतलाते हैं । अध्वोच्य प्रतियां
थिर-सुप्रियर विण अधुवबंधी मिच्छ बिणु मोहधुवबंधो । निद्दोवघाय मीसं सम्म पणनवद अधुवुक्या ॥७॥
शब्दार्थ-घिर-मुभियर-स्थिर, शुभ तथा उनसे इतर नामकाम, षिण–विना, अधुबबंधी-अध वबंधी प्रकृति, मिकछ विणुमिथ्यात्व के अलावा, मोहधृवबंधो- मोहनीन फर्म की शेष ध्र वबंधिनी प्रकृतियां, निदा पात्र निद्रायें. उपघाय उपप्रात, मोसं - मिश्र मोहनीय, सम्म– सम्यक्त्व मोहनीय, पणनषद---पंचानवे, मधुवृदयाअभ्र वोदया। ____ गाया—स्थिर, शुभ और उनसे इतर अस्थिर और अशुभ के सिवाय शेष अध्रुवबन्धिनी (६६) प्रकृतियां, मिथ्यात्व के बिना मोहनीय कर्म की ध्रुवबन्धिनी १८ प्रकृतियां, पांच निद्रा, उपघात, मिश्र व सम्यक्त्व मोहनीय कुल ये ६५ प्रकृतियां अध्रुवोदया हैं।
विशेषार्थ-पूर्व गाथा में २७ ध्रुवोदया प्रकृतियों के नाम बतलाये हैं अतः उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से उक्त २७ प्रकृतियों को कम