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पंचत कर्म ग्रन्थ
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भाग का भाग दिया, उममें से बहुभाग अपर की स्थिति में निक्षेपण करता
सेसगमागे मनिचे असंखसोगेण तत्व बहभाग ।
गुणसे दिए सिंवि सेसेगं बेष उदयाम्हि ॥७० अवशष एक भाग को असत्यात लोकः सा मांग ३५... जो बहुभाग बाये, उसको गुणणि आयाम में और शेष एक भाग का उदयाजि में देना चाहिए।
उरयावलिस्म बव्यं आवनिजि होदि मनायमं । कलमदाणूमेण - गिसेप हारेन ॥७१ मनिममघगमवहरिदे पचयं पचयं गिमेय हारेण ।
गुणिवे आदि णिसेयं विसेसहीणं कम मत्तो ॥७२ उदयाघ लि में दिये गये द्रव्य में आवली के समय प्रमाण का भाग मे पर मध्यघन होता है और उस मध्यघन की एक कम आवली प्रमाण गच्छ के आधे कम निपकहार का भाग देने से वय का प्रमाण होता है। उस चय को मिर्षकाहार से (दो गुण हानि से) गुणा करने पर आनन्दी के प्रथम निषेक के
ध्य का प्रमाण आता है । उससे द्वितीयादि निषेकों में दिये क्रम से एक-एक चय कर घटता प्रमाण लिये जानना चाहिये । वहाँ एक कम आवली मात्र चय घटने पर अंतनिषेक में दिये द्रव्य का प्रमाण होता है।
उक्कविम्हि देहि हु असंखसमयप्पषमाविम्ह ।
संखातीवगुणवकम मसंखहीण विसेसहीणकर्म ॥ ७३ गुणनेणि के लिये अपकर्षण किये द्रव्य को प्रथम समय की एक शलाका, उससे दूसरे समय को असंख्यात गुणी, इस तरह अंत समय तक असंख्यातगुणा क्रम लिए हए जो शलाका, उनको जोड़ उसका भाग देने से जो प्रमाण आये उसको अपनी-अपनी शलाकाओं से गुणा करने से गुणश्रेणि आयाम के प्रथम निक में दिया ट्रव्य असंख्यात समय प्रबद्ध प्रमाण आता है। उससे वितीयादि निषेकों में द्रष्य क्रम से असंख्यातगुणा अंत समय तक जानना 1 प्रथम निषेक में द्रव्य गुणणि के अंत निषेक में दिये द्रव्य के असंख्यात भाग प्रमाण है। प्रथम गुणहानि का द्वितीयादि निषेकों में दिया द्रव्य चय घटता ब्रम्प लिये