Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 488
________________ पंचम कर्मग्रन्थ सोलछेमिका छक्क चनुसेक्क पावरे अदो एक्क । खोणे सोससऽजोगे घायर तेवत ते ॥३३७ उसके नौ भागों में में पांच भागों में क्रम से सोलह, आठ, एक, एक, छह प्रकृतियों का क्षय होता है अथवा सत्ता से व्युच्छिन्न होती है तथा शेष चार भागों में एक-एक ही की सत्ता व्युच्छिन्न होती है । अनन्तर दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणम्यान में एक प्रकृति की न्युच्छित्ति होती है । ग्यारहवें गुणस्थान में योग्यता नहीं होने से किसी भी प्रकृति का विच्छेद नहीं होता है और उसके बाद बारहवें जीणमोह गुणस्थान के अन्त समय में सोलह प्रकृतियों की सत्ता म्युचिन्छन्न होती है। समोगी केवली गुणस्थान में किसी भी प्रकृति की व्यूजित्ति नहीं होती और अयोगी केवली-चौदहवें गुणस्थान के अन्त के दो समयों में से पहले समय में ७२ तथा दूसरे समय में १३ प्रकृतियों का विच्छेद होता है। प्रकृतियों के विच्छेद होने का स्पष्टीकरण इस प्रकार जानना चाहिये कि नौर्य गुणस्थान के नौ भागों में से पहले भाग में नामकर्म की १३ प्रकृतियां | नरकतिक, तिर्यचटिक, विकलत्रिक, आतप, उद्योत, एकेन्द्रिय, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर तया दर्शनावरण की ३ प्रकृतियाँ --स्त्यानद्धित्रिक, कुल १६ प्रकृतियां क्षपण होती हैं । दूसरे भाग में अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क, प्रत्याख्यानावरण चतुष्क कुल आठ प्रकृतियों का, तीसरे भाग में नपुंसक बेद, चौथे भाग में स्त्रीवेद, पांचवें भाग में हास्यादि षट्क तथा छठे, सातवें, आठवें और नौ भाग में क्रमवाः पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध, मान, माया का क्षपण होता है। इस प्रकार नौवें गुणस्थान में ३६ प्रकृतियां ब्युरिछन्न होती हैं । दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में संज्वलन लोभ, बारहवें गुणस्थान में ज्ञानाधरण पांच, दर्शनावरण चार, अंसराय पांच और निद्रा व प्रचला, इस प्रकार सोलह प्रकृतियां क्षय होती हैं, फिर सयोगकेपली होकर चौदहा गुणस्थान प्राप्त होता है और उसके उपान्त्य समय में नाम, गोत्र, वेदनीय की ७२ प्रकृ. तियों का भय होता है और अन्त समय में १३ प्रकृसियों का क्षय हो जाने पर मुक्त तशा प्राप्त हो जाती है । जो क्षपक श्रेणि का प्राप्तव्य है । अयोग केवली गुणस्थान के मंत्र समय में किन्हीं-किन्हीं प्राचार्यों का मत

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