Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
११ स्थितिमान ... कीब के द्वारा महल लिये कर्म पुद्गलों में अपने स्वभाव को न त्यागकर जीव के साथ रहने के काल की मर्यादा को स्थितिबन्ध कहते है ।
(३) रसबंध- जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए कर्म पुद्गलों में फल देने की न्यूनाधिक शक्ति के होने को रसबंध कहते हैं।
रसबंध को अनुभागबंध' या अनुभावबंध भी कहते हैं।
(४) प्रदेशसंघ-जीव के साथ न्यूनाधिक परमाणु वाले कर्मस्कन्धों का संबन्ध होना प्रदेशबंध कहलाता है।
सारांश यह है कि जीव के योग और कषाय रूप भावों का निमित्त पाकर जब कार्मण वर्गणायें कर्मरूप परिणत होती हैं तो उनमें चार बातें होती हैं, एक उनका स्वभाव, दूसरी स्थिति, तीसरी फल देने की शक्ति और चौथी अमुक परिमाण में उनका जीव के साथ सम्बन्ध होना | इन चार बातों को ही बंध के प्रकृति, स्थिति, रस, प्रदेश ये चार प्रकार कहते है। ___ इनमें से प्रकृतिबंध और प्रदेश बंध जीव की योगशक्ति पर तथा स्थिति और फल देने की शक्ति कषाय भावों पर निर्भर है।' अर्थात् योगशक्ति तीन या मन्द जैसी होगी, बंध को प्राप्त कर्म पुद्गलों का
१ दिगम्बर साहित्य में अनुभाग बंध हो विशेषतया प्रचलित है। २ स्वभावः प्रकृति प्रोक्तः स्थितिः फासावधारणम् ।
अनुभागो रसो शेयः प्रदेशो दलसञ्चयः ।। -- स्वभाव को प्रकृति, काल की मर्यादा को स्थिति, अनुभाग को रस और
दलों की संख्या को प्रदेश कहते हैं। ३ पडिपएसबंधा जोगेहि कमायओ इयरे ।
-पंचसंग्रह २०४