Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
३०१
पंचम कर्मग्रन्य काल तक असंख्यात गुणित क्रम से जो दलिकों को स्थापना की जाती है, उसे गुणश्रोणि कहते हैं ।
सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय जीव इस प्रकार की गुणणि रचना करता है । गुणणि उदय समय से होती है और ऊपर-ऊपर असंख्यात गुणं दलिकस्थापित किये जाते हैं । अतः गुणणि करने वाला जीव ज्यों-ज्यों ऊपर की ओर चढ़ता है त्यों-त्यों प्रति समय असंख्यातगुणी, असंख्यातगुणी निजरा करता जाता है । इसका कारण यह है कि जिस काम से दलिक स्थापित होते हैं उसी क्रम से वे प्रतिसमय उदय में आते हैं, वे असंख्यात गुणित क्रम से स्थापित किये जाते हैं और उसी क्रम से उदय में आते हैं, जिससे सम्यक्त्व में असंख्यातगुणो निर्जरा होती है । ___ सम्यक्त्व की प्राप्ति के बाद देशपिरति और सर्वविरति की प्राप्ति के लिये जीव यथाप्रवृत्त और अपूर्वकरण ही करता है, तीसरा अनि वृत्तिकरण नहीं करता और अपूर्वकरण में यहां गुणश्रेणि रचना भी नहीं होती है और अपूर्वकरण का काल समाप्त होने पर निश्चित ही देशविरति या सर्वविरति की प्राप्ति हो जाती है । जिससे अनिवृत्तिकरण की आवश्यकता नहीं रहती है।
उक्त दोनों करण- यथाप्रवृत्त, अपूर्वकरण यदि अविरत दशा में किये जाते हैं तब तो देशविरति या सर्वविरति की प्राप्ति होती है और यदि देशविरति दशा में किये जाते हैं तो सर्वविरति ही प्राप्त होती है । देशविरति अथवा सर्वविरति की प्राप्ति होने पर जीव उदयावलि के ऊपर गुणश्वणि की रचना करता है । जो प्रकृतियाँ उदयवती होती हैं, उनमें तो उदय क्षण से लेकर ही गुणश्रेणि होती है किन्तु अनुदयवती प्रकृतियों में उदयावलिका के ऊपर के समय से लेकर गुणश्रोणि होती है । पाँचवें गुणस्थान में अप्रत्याख्यामाररण और छठे गुण