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शतक
है, उसे बादर द्रव्ययुगल परावर्त कहते हैं। और जितने समय में समस्त परमाणुओं को औदारिक आदि सात वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणा का परिणामा कर रहे महा ना छोड़ देता है, उतने समय को सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त कहते हैं।
उक्त कथन का सारांश यह है कि बादर द्रव्यपुद्गल परावर्त में तो समस्त परमाणुओं को आहारक को छोड़कर सात रूप से भोगकर छोड़ा जाता है और सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त में उन्हें केवल किसी एक रूप से ग्रहण करके छोड़ा जाता है । यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि समस्त परमाणुओं को एक औदारिक शरीर रूप परिणमाते समय मध्य में कुछ परमाणुओं को वैक्रिय शरीर आदि रूप ग्रहण करके छोड़ दिया या समस्त परमाणुओं को वैक्रिय आदि शरीर रूप ग्रहण करके छोड़ दिया अथवा समस्त परमाणुओं को वैक्रिय शरीर रूप परिणमाते समय बीच-बीच में कुछ परमाणुओं को औदा. रिक आदि रूप से ग्रहण करके छोड़ दिया तो वे गणना में नहीं लिये जाते हैं । किन्तु जिस शरीर रूप परिवर्तन चालू है, उसी शरीर रूप जो पुद्गल परमाणु ग्रहण करके छोड़े जाते हैं, उन्हें ही सूक्ष्म द्रव्यपुद् गल परावर्त में ग्रहण किया जाता है।
आहारक शरीर को छोड़ने का कारण यह है कि आहारक शरीर एक जीव को अधिक-से-अधिक चार बार ही हो सकता है । अत: वह पुद्गल परावर्त में उपयोगी नहीं हैआहारकशरीरं बोत्कृष्टतोऽप्येकजीवस्य वारपतुष्टयमेव सम्भवति, ततस्तस्य पुद्गलपरावर्त प्रत्यनुपयोमान्न ग्रहणं कृतमिति ।
-प्रवचन दीका, पृ. ३०८ स० २ एतस्मिन् सूक्ष्मे द्रव्यपुद्गलपरावर्ते विवक्षितकशरीरव्यतिरेकेणान्य
शरीरतया ये परिमुज्य परिभुज्य परित्यज-ते ते न गण्यन्ते, किन्तु प्रभूतेऽपि काले गते सति ये च विवक्षितकशारीररूपतया परिणम्यन्ते त एष गण्यन्ते ।
--प्रवचन टोका पृ० ३०० उ.