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परिशिष्ट-२
समय किस गुणस्थान से किस-किस गुणस्थान में आ सकता है त.पा मरण की अपेक्षा से भी भूयस्कार आदि बंध गिनाये हैं।
कर्मग्रन्में एक से दो, दो से तीन, तीन से चार आदि का बंध बतलाकर दस बंघस्थानों में नौ भूपस्कार बंध बतलाये हैं, लेकिन कर्मकांड में उनके सिवाय ग्यारह भूयस्कार और भी बतलाये हैं । वे इस प्रकार हैं-मरण की अपेक्षा से जीव एक को बांधकर सत्रह का, तीन को बाधकर सत्रह का, चार को बांध कर सत्रह का और पांच को बांध कर सत्रह का बंध करता है। अतः ये पांच भूयस्कार तो मरण की अपेक्षा से होते हैं तथा छठे प्रमतसंयत गुणस्थान में नौ प्रकृतियों का बन्ध करके कोई जीव पांचवे गुणस्थान में आकर तेरह का बंध करता है, कोई जीव चौथे गुणस्थान में आकर सत्रह का बंध करता है
और कोई जीव दूसरे गुणस्थान में आकर इसकीस का बंध करता है और कोई जीव पहले गुणस्थान में आकर बाईस का बंध करता है। क्योंकि छठे प्रमत्त. संयत गुणस्थान से युक्त होकर जीव नीचे के समी गुणस्थानों में जा सकता है। अत: नौ के चार भूयस्कार बंध होते हैं । इसी प्रकार पांचवें गुगस्थान में तेरह का बंध करके सत्रह, इक्कीस और बाईस का उन कर सकता है, अत: तेरह के तीन भूयस्कार बंध होते हैं। सत्रह को बांधकर इक्कीस और बाईस का बंध कर सकता है, अत: सत्रह के दो भयस्कार होते हैं। इस प्रकार नौ के चार, तेरह के तीन और सत्रह के दो भूयस्कार बंध होते हैं। _लेकिन कंर्मग्रन्थ में प्रत्येक बंधस्थान का एक-एक, इस प्रकार तीन ही भूयस्कार बतलाये हैं । अतः शेष छह रह जाते हैं तथा मरण की अपेक्षा से पांच भूयस्कार पहले बतला चुके हैं। इस प्रकार गो० फर्मकांड में ५-६ = ११ भूपस्कार अधिक बतलाये हैं। ___ कर्मग्रन्थ में अल्पतर बंध आठ बतलाये हैं किन्तु कर्मकांड में उनकी संख्या ग्यारह बसलाई है। वे इस प्रकार है-.-कर्मग्रन्थ में बाईस को बांधकर सत्रह का बंध रूप केवल एक ही अल्पतर बन वत लाया है लेकिन पहले गुणस्थान से सातवें गुणस्थान तक जीव दूसरे और छठे गुणस्थान के सिवाय सभी गुणस्थानों में मा सकता है । अतः बाईस को बांधकर सत्रह, तेरह और नो का वध कर सकने के कारण बाईस प्रकृतिक बंधस्थान के तीन अल्पतर होते हैं तथा सत्रह का