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पंचम कर्मग्रन्थ
शरीर नामक में – आहारक शरीर का सबसे कम संक्रिय शरीर का उससे अधिक, औदारिक शरीर का उससे अधिक, अधिक और कार्मण शरीर का उससे अधिक भाग है ।
तेजस शरीर का उससे
इसी तरह पांच संघातों का भी समझना चाहिये । अगोपांग नामकर्म में – आहारक अंगोपांग का सबसे कम उससे अधिक, औदारिक का उससे अधिक भाग है ।
संस्थान नामक में— मध्य के चार में बराबर-बराबर भाग होता है। उससे का भाग उत्तरोत्तर अधिक है ।
रक
बंधन नामक में – आहारक आहारक बंधन का सबसे कम, आहारकतेजस बंधन का उससे अधिक आहारक- कार्मण बधन का उससे अधिक, थाहा * तैजस-कार्मण बंधन का उससे अधिक, वैक्रिय-संक्रिय बंधन का उससे अधिक, यि - Fan बन्धन का उससे अधिक, वैकिय कामेण बन्धन का उससे अधिक, क्रिम जस- कामं बन्धन का उससे अधिक, इसी प्रकार बारिक औदारिक बंधन, औदारिक- नेजस बधन, औदारिक कार्मण बन्धन, औदारिक तैजसकार्मण बंधन, तेजस तेजस बंधन, तैजस-कार्पण बन्धन और कामंणकार्मण बन का भाग उत्तरांतर एक से दूसरे का अधिकधहा है।
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संहनन नामकर्म में
सबसे थोड़ा है, उससे सेवा का अधिक है ।
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वैक्रिय का
संस्थानों का सबसे कम किन्तु आपस समचतुरस्र और उससे इंड संस्थान
आदि के पांच संहननों का द्रश्य बराबर किन्तु
वर्णं नाम में कृष्ण का सबसे कम और नील, लोहित, पीत तथा शुक्ल
का एक से दूसरे का उत्तरोत्तर अधिक भाग है ।
गंध में सुगंध का कम और दुर्गन्ध का उससे अधिक भाग है । रम में – कटुक रस का सबसे कम और तिक्त, कसैला खट्टा रस का उत्तरोत्तर एक से दूसरे का अधिक अधिक भाग है ।
और मधुर
स्पर्श में – कर्कश और गुरु स्पर्श का सबसे कम, मृदु और लघु स्पर्श का उससे अधिक सूझ और फीत का उससे अधिक तथा स्निग्ध और उष्ण का
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