Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 474
________________ पचम कर्मग्रन्थ ४३६ अर्थात् क्षेत्रसमास की वृहद्वृत्ति और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृद्धि का यह अभिप्राय है कि उत्तरकुरु के मनुष्य के केशाय लेना चाहिये। किंतु प्रवचनसारोद्धार की वृति और संग्रहणी की वृहद्वृत्ति में सामान्य से सिर मुड़ा देने पर एक से लेकर सात दिन तक के उगे हुए बालों का उल्लेख किया है. उत्तरकुरु के मनुष्य के बालाओं का ग्रहण नहीं किया है। क्षेत्रविचार की स्वोपज्ञवृत्ति में लिखा है कि देवकुरु- उत्तरकुरु में जन्मे सात दिन के मेष ( मेड) के उत्सेधांगुलप्रमाण रोम को लेकर उसके सात बार आठ-आठ खंड करना चाहिये । अर्थात् उस रोम के आठ खंड करके पुनः एक-एक खंड के आठ-आठ खंड करना चाहिए। ऐसा करने पर उस रोम के बीस लाख सत्तानव हजार एकसौ बावन २०६७१५२ खंड होते हैं। इस प्रकार के खंडों से उस पल्स को भरना चाहिए । जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी एयाहि चेहि तेहिअ उक्कोसेणं सत्त रत्तपरूठाणं वालग्गकोडीज' ही पाठ है। जिसका टीकाकार ने यह अर्थ किया है। वालेषु प्राणि श्रेष्ठाणि वालाग्राणि कुरुतर रोमाणि तेषां कोटयः अनेकर: कोटी प्रमुखाः संख्याः जिसका आशय है कि बालों में अग्न श्रेष्ठ जो उत्तरकुरु देव कुरु के मनुष्यों के बाल, उनकी कोटिकोटि । इस प्रकार टीकश्कार ने बाल सामान्य से कुरुभूमि (देवकुरु, उत्तरकुरु) के मनुष्यों के बालों का ग्रहण किया है। दिगम्बर साहित्य में 'एकादिसप्ताहोरात्रिजाताविवालाग्राणि' लिखकर एक दिन से सात दिन तक जन्मे हुए मेष (भेड़) के बालाग्र ही ग्रहण किये हैं। दिगम्बर साहित्य में पल्योपम का वर्णन उपमा प्रमाण के द्वारा काल की गणना करने के लिए पल्योषम, सागरोपम का उपयोग श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों संप्रदायों के साहित्य में समान रूप से किया गया है। लेकिन उनके वर्णन में भिन्नता है। श्वेताम्बर साहित्य में पाये जाने वाले पस्योपम के स्वरूप आदि का वर्णन गा० ६५ में किया जा चुका है, लेकिन दिगम्बर साहित्य में पत्योम का जो वर्णन मिलता है, वह उक्त वर्णन से भिन्न है । उसमें क्षेत्रपल्योपम नाम का कोई भेद नहीं है कुछ

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