Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

Previous | Next

Page 465
________________ परिशिष्ट-२ प्रकुतियों को एफ एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में आवली के असख्यात भाग का भाग देकर बहुभाग निकालते जाना चाहिए और पहला बहुभाग स्त्यानदि को, दूसरा निद्रा-निदा का. तीसरा प्रचला-प्रचला को, चौथा निद्रा को, पांचवा प्रचला को, छठा चक्षुदांनाचरण को, सातवां अचक्षुपर्शनावरण को, माठवा अवधिदर्शनावरण का और शेष एक भाग केवलदर्शनावरण को देना चाहिए । इसी प्रकार देशपाती द्रव्य में शावली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रख बहुभाग के तीन समान भाग करके देशघाती चक्षुदशनावरण, अचश दर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण को एक-एक माग देना चाहिए । शेष एक भाग में भी भाग देकर बहुभाग चक्षुदर्शनावरण, इस बहभाग अचक्षुदर्शनावरण को और शेष एक भाग अवधिदर्शनावरण को देना चाहिए । अपने-अपने भागो का संकलन करने से अपने-अपने द्रव्य का प्रमाण होता है । चक्षु, अवक्ष और अवधि दर्शनावरण का द्रव्य सर्वघाती भी है और देशघाती भी । शेष छह प्रकृतियों के सर्वघातिनी होने से उनका दृष्य सर्वघाती ही होता है। अम्तराय-प्राप्त द्रव्य में आवली के असंख्यातवें भाग (प्रतिभाग) का भाग देकर एक भाग के बिना घोष बहुमाग के पांच समान भाग करके पांचों प्रकृतियों को एक, एक भाग देना चाहिए । अब मोष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग बीर्यान्तराय को देना चाहिए। शेष एक भाग में पुनः प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग उपभोगान्त राय को देना चाहिये। इसी प्रकार जो जो अबशेष एक भाग रहे, उसमें प्रतिभाग का भाग दे-देकर क्रमश: बहुभाग भोगान्तराय और लाभारतराय को देना चाहिए । शेप एक भाग दानान्त राय को देना चाहिए । अपने-अपने समान भाग में अपना-अपना बहभाग मिलाने से प्रत्येक का द्रव्य होता है। मोहनीय-सर्वघानी द्रव्य को प्रतिभाग आवली के असख्यानवें भाग का भाग देकर एक भाग को अलग रखकर शेष बहुभाग के समान मत्र भाग यारके सत्रह प्रकृतियों को देना चाहिये । पोष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहभाग मिथ्यात्व को देना चाहिए । शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहभाग अनन्तानुबन्धी लोभ को दें, शेष एक भाग को प्रतिभाग का भाग

Loading...

Page Navigation
1 ... 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491