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पंचम कर्मग्रन्थ
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देकर बहभाग अनन्तानुजन्धी माया को देना चाहिये । इसी प्रकार जो जो भाग शेष रहता जाये उसको प्रतिभाग का भाग दे देवार बहुभाग अनंतानुबंधी शोध को, अनंतानुबंधी मान को, संज्वलन लोभ को, संज्मलन माया को, सज्वलन क्रोध को, संज्वलन मान को, प्रत्याख्यानावरण लोभ को, प्रत्याख्यानावरण माया को, प्रत्याख्यानावरण क्रोध को, प्रत्याख्यानावरण मान को, अप्रत्माख्यानाबरण लोभ को. अप्रत्याख्यानाचरणा माया की, अप्रत्यान्यानावरण को को देना चाहिए और शेष एक भाग अप्रत्याख्यानावरण' मान को देना चाहिए । अपने अपने एक एक भाग में पीछे के अपने-अपने बहभाग को मिलाने से अपना-अपना सर्वघाती द्रव्य होता है।
देशघाती द्रव्य को आवली के असंख्यात में भाग का भाग देकर एक भाग को अलग रखकर बहुमाग का आधा नोकषाम को और बहुभाग का आधा और शेष एक भाग संज्वलन कषाय को देना चाहिये । संज्वलन कषाय के देशपाती द्रव्य में प्रतिभाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रखकर शेष बहभाग के चार समान भाग करके चारों क्रोधादि कषायो को एक-एक भाग देना चाहिये । पोष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर संज्वलन लोभ को देना चाहिये । शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग संज्वलन माया को देना चाहिये। शेष एक भाग में प्रतिभान का भाग देकर बहुभाग संज्वलन क्रोध को देना चाहिये और शेष एक भाग संज्वलन मान को देना चाहिये । पूर्व के अपने-अपने एक भाग में पीछे का बहुभाग मिलाने से अपना अपना देशघासी द्रव्य होता है। चारों संज्वलन कषयों को अपना-अपना सर्वघाती और देशघाती द्रव्य मिलाने से अपना-अपना सर्वद्रव्य होता है।
मिथ्यात्व और बारह फषाय का सब द्रव्य सर्वघाती ही है और नोकषाय का सब द्रव्य देशघाती ही। नोकषाय का विभाग इस प्रकार होता है-नोकषाय के द्रष्य को प्रतिभाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रख, बहुभाग के पाँव मभान भाग करके पांचों प्रकृतियों को एक-एक भाग देना चाहिये । शेष एक भाग को प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग तीन वेदों में से जिस देद का बंध हो, उसे देना चाहिये । शेर एक भाग को प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग रति और अरति में से जिसका बंध हो, उसे देना चाहिये । शेष एक