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पंचम कर्मग्रन्य
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उसर प्रकृतियों में मोहनीय, ज्ञानाबरण, दर्शनावरण के भेदों में क्रम से होन-हीन द्रव्य है और नाम, अंतराय कर्म के भेदों में कम से अधिक-अधिक द्रव्य है तथा बाकी बचे वेदनीय, गोत्र, आयु कर्म, इन तीनों के भेदों में बटवारा नहीं होता है । क्योंकि इनकी एक ही प्रकृति एक काल में बंधती है । जैसे देदनीय में साता वेदनीय का बंध हो या असाता वेदनीय का परन्तु दोनों का एक साथ बध नहीं होता है। इसीलिए मूल-प्रकृति के द्रव्य के 'प्रमाण ही इन तीनों के द्रव्य को समझना चाहिए ।
विभाग की रीति निम्न प्रकार है
शामावरण---सर्वघाती द्वन्ध में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर बहुभाग के पांच समान भाग करके पांच प्रकृतियों को एक एक भाग देना चाहिए। शेष एक भाग में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर बहभाग मतिज्ञानावरण की, शेष एक भाग में पुनः मावली के असंख्यात माग का प्राग देकर दूसरा सवयाग श्रुतमानावरण को पोष भाग में पुन: आवली के असंख्यात भाग का भाग देकर तीसरा बहुमाग अवधिज्ञानावरण को, इसी तरह चौथा बहुभाग मनपर्यायज्ञानावरण को और शेष एक भाग केवलज्ञानावरण को देना चाहिए । पहले के भाग में अपने अपने बहुभाग को मिलाने से मतिज्ञानावरण आदि का सर्वधाती द्रव्य होता है।
अनन्तवें भाग के सिवाय शेष बहभाग द्रव्य देशघाती होता है । यह देशघाती द्रध्य केवलज्ञानावरण के सिवाय शेष चार देशघाती प्रकृतियों को मिलता है। विभाग की रीति पूर्व अनुसार है । अर्थात् देशघाती द्रब्य में आवली के असंध्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रखकर शेष बहुभाग के चार समान भाग करके चारों प्रकृतियों को एक एक भाग देना चाहिए। शेष एक भाग में आवली के असख्यासवें भाग का भाग देकर बहुभाग निकालते हुए क्रमशः वह बहुभाग मतिज्ञानावरण, यूत ज्ञानावरण, अवधिज्ञानाचरण और मनपर्यायज्ञानावरण को नम्बर वार देना चाहिए। अपने-अपने सर्वधाती और देशघातो द्रव्य को मिलाने से अपने अपने सर्व द्रव्य का परिमाण होता है ।
दर्शनावरण-- सर्वघाती द्रव्य में आवली के असंख्यात भाम का भाग देकर एक भाग को अलग रखकर शेष बहुभाग के नौ भाम करके दर्शनावरण की नौ