Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 462
________________ F r ! पंचम कर्मन्य असख्य तवं भाग का प्रमाण ४ है | अतः २५६०० को ४ से भाग देने पर लब्ध ६४०० आता है, यह एक भाग है इस प्रकार एक भाग को २५६०० में से घटाने पर १६२०० बहुभाग आता है। इस बहुभाग के आठ समान भाग करने पर एक-एक भाग का प्रमाण २४००, २४०० होता है अतः प्रत्येक कर्म के हिस्से में २४००, २४०० प्रमाण द्रव्य आता है। शेष एक भाग ६४०० को ४ से भाग देने पर ल १६०० आता है। इस १६०० को ६४०० में से घटाने पर ४५०० बहुभाग हुआ । यह बहुभाग बेदनीय कर्म का है। शेष १६०० में ४ का भग देने पर लब्ध ४०० आता है । १६०० में से ४०० घटाने पर बहुभाग १२०० हुआ, जो मोहनीय कर्म का हुआ। शेष एक भाग ४०० में ४ का भाग देने पर - १०० आता है । ४०० में से १०० को घटाने पर बहुभाग ३०० आता है । इस बहुभाग ३०० के तीन समान भाग करके ज्ञाताचरण, दर्शनावरण और अन्तराय को १०० १०० देना चाहिए । शेष १०० में ४ का भाग देने से लब्ध २५ आया । इस २५ को १०० में में घटाने पर बहुभाग ७५ आता है । इस बहुभाग के दो समान भाग कर नाम और गोत्र कर्म को बांट दिया और शेष एक भाग २५ आयुकर्म को दे देना चाहिए । अतः प्रत्येक कर्म के हिस्से में निम्न द्रव्य आता है — - वेदनीय '२४०७ ४८०० ७२०० नाम २४०० ३७१ मोहनीय २४०० १२०० ३६०० गोत्र २४०० ३७३ जानावरण २४०० १०० २५०० आयु २४. ÷५ दर्शनावरण २४०० १०० २५०० अंतराय २४०० १०० २५०० ४२७ २४३७३ २४३७÷ २४२५. इस प्रकार २५६०० में इतना इतना बव्य उस उस कर्म रूप परिणत होता है । यह उदाहरण केवल विभाजन की रूपरेखा समझाने के लिए है किन्तु वास्त

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