Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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परिशिष्ट-२
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भानावरण, दर्शनावरण, इन तीन घातिया कमो का भाग आपस में समान है लेकिन नाम, गोन के भाग से अधिक है। इससे अधिक मोहनीय कर्म का भाग है तथा मोहनीय से भी अधिक वेदनीय कर्म का भाग है । जहां जितने कर्मों का बन्च हो वहां उतने हो कर्मों में विभाग कर लेना चाहिये । विभाग करने की रीति यह है
बहुमागे समझागो अहं होवि एषकमाम्हि ।
उत्तकमो तरवि बहभागो अझुगस्स वेभो बु॥ १६५ बहुभाग के समान भाग करके आठों कर्मों को एक-एक भाग देना चाहिए। शेष एक भाग में पुन: बहुभाग करना चाहिए और वह बहुभाग बहुत हिस्से वाले कर्म को देना चाहिए। ___इस रीति के अनुसार एक समय में जितने पुदगल द्रव्य का बंध होता है, उसमें आवली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को अलग रखना चाहिए, और बहुभाग के आठ सभान भाग फरके आठों कर्मों को एक-एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाव से भाग देकर एक 'भाग को अलग रखकर बहुभाग वेदनीय कर्म को देना चाहिए, क्योंकि सबसे अधिक भाग' का स्वामी वही है। शेष भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को जुदा रखकर वहभाग मोहनीय कर्म को उसकी स्थिति अधिक होने से देना चाहिए। शेष एक भाग में पुन: आवली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को जुदा रख बहुभाग के तीन समान भाग करके झानावरण, दर्शनावरण और अंसराय कर्म को एकनाक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में पुन: आवली के असंख्पात भाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रन बहुभाग के दो समान भाग करके नाम और गोत्र कर्म को एक, एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग आयुकौ को देना चाहिए । इस प्रकार पहले वटबारे में और दूमरे बटवारे में प्राप्त अपने-अपने द्रव्य का संकलन करने से अपने-अपने भाग का परिमाण आता है। यानी ग्रहण किये हए द्रव्य में से उतने परमाण उस जम कर्म रूप होते है ।
पूर्वोक्त कथन को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं कि एक समय में जितने पुद्गल दव्य का बंध होता है, उसका परिमाण २५६०० है और आवसी के