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पंचम फर्मग्रन्थ
चतुरिन्द्रिय लब्धि-अपर्याप्तक का जघन्य, त्रीन्द्रिय नित्य पर्याप्तक का उत्कृष्ट, चतुरिन्द्रिय निर्वृषपर्याप्तक का जघन्य, चतुरिन्द्रिय लन्ध्यपर्याप्तक का उत्कृष्ट, असंशी पंचेन्द्रिय सध्यपर्याप्तक का जघन्य, चतुरिन्द्रिय नित्यपर्याप्तक का उत्कृष्ट और असंज्ञी पंचेन्दिर नित्यपर्याप्तक का जघन्य उपपाद योगस्थान क्रम-क्रम से अधिक-धिक जानना ।
तह य असणीसाणी असण्णिसEिR सण्णिउववावं ।
सुहमेह विपाडगावर एयंतारिखस्स ।। २३६ इसी प्रकार उससे अधिक असंजो सध्यपर्याप्तक का उत्कृष्ट स्थान और संजी लब्ध्यपर्याप्तक का जघन्य स्थान, उससे अधिक असंजी नित्यपर्याप्तक का उत्कृष्ट और संशी नित्यपर्याप्तक का जघन्य स्थान, उससे संजी पंचेन्द्रिय सन्ध्यपर्याप्तक का उत्कृष्ट उपपादयोगस्थान पल्य के असंख्यातवें भाग गुणा है और उससे अधिक गुणा सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक का जघन्य एकातानुवृद्धि योगस्थान जानना चाहिये ।
सम्णिसुषवादपरं नियत्तिगवस्स मुमजीवस्स ।
एवंतवाहितअवर अधिररे धूलपले ५ ॥ २३७ उससे अधिक संझी पंचेन्द्रिय नित्यपर्याप्तफ का उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान, उससे अधिक सूक्ष्म एफेन्द्रिय नित्यपर्याप्तक का जघन्य एकांतानुवृद्धि योगस्थान है, उससे अधिक बादर एकेन्द्रिय लब्स्यपर्याप्तक का और वावर (स्थूल) एकेन्द्रिय नित्यपर्याप्तक का जघन्य एकान्तानुवृद्धि योगस्थान कम से पल्य के असंख्यात माग कर गुणा है।
तह सुहममुहमजेद्रं सो पावरबावरे वर होदि ।
अंतरमवरं लविगसुमिहरवरपि परिणामे ।। २३८ इसी प्रकार उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्घ्यपर्याप्तक और सूक्ष्म एकेन्द्रिय निवृत्यपर्याप्तक इन दोनों के उत्कृष्ट योगस्थान फ्रम से अधिक है । उससे अधिक बादर एकेन्द्रिय लम्ध्यपर्याप्तक और बादर एफेन्द्रिय नित्यपर्याप्सक इन दोनों के उत्कृष्ट एकांतानुष्ठि योगस्थान हैं, उसके बाद अंसर है। अर्थात् बादर एकेन्द्रिय नित्यपर्याप्तक का उत्कृष्ट एकांतानुवृद्धि योगस्थान और सुक्ष्म