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पंचम कर्मग्रन्थ
भंगों को और बाईस के छह भंगों को परस्पर गुणा करने पर ४४ ५ = २४ मुजाकार होते हैं । तीसरे गुणस्थान में बारह भुजाकार होते हैं। क्योंकि सत्रह को बांधकर बाईस का बंध करने पर २x६=१२ मंग होते हैं । चौथे में बीस भुजाकार होते हैं, क्योंकि सत्रह का बंध करके इक्कीस का बन्ध होने पर २४४
- और आईम मा बन्ध होने पर २ x ६=१२, इस प्रकार १२+==२० भंग होते है। पांचवें गुणस्थान में चौबीस भुजाकार होते है, क्योंकि तेरह का बन्ध करके सत्रह का वध होने पर २४२=४, इक्कीस का बंध होने पर २४४-८ और बाईस का बंध होने पर २४६=१२ इस प्रकार ४++१२=२४ मंग होते हैं। छठे में अट्ठाईस मुजाकार होते हैं, क्योकि नौ का बन्ध करके तरह का बन्ध करने पर २२२४, सत्रह का वध करने पर २४२-४, इक्कीस का बंध करने पर २४४-- और बाईस का बन्ध करने पर २४६-१२, इस प्रकार ४+४+ +१२-२८ भंग होते हैं। सातवें में दो भुजाकार होते हैं, क्योंकि सातवें में एक भंग सहित नौ का बंध करके मरण होने पर दो भंग सहित सत्रह का बंध होता है । आठवें गुणस्थान में भी सातवें के समान ही दो भुजाकार होते हैं। नौवें गुणस्थान में पाच, चार आदि पांच बंधस्थानो में से प्रत्येक के तीन-तीन मुजाकर होते हैं, जो एक-एक गिरने की अपेक्षा से और दो-दो मरने की अपेक्षा से । इस प्रकार एक सौ सत्ताईस भुजाकार बंध होत है। पंतालीस अल्पतर बंध इस प्रकार हैं
अप्पदरा पुण तीसं णम पम छटोणि बोणि णम एव । यूले पणगावोणे एकवर्क अंतिमे सुण्ण ॥ ४७३ पहले गुणस्थान में तीस अल्पतर बंध होते हैं, उसके आगे दूसरे गुणस्थान से लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान तक क्रम से शून्य, शुन्य, ६, २, २, शून्य, १ प्रकृति रूप अल्पतर बंध हैं | नौवें गुणस्थान में पान आदि प्रकृति रूप का एक, एक ही अल्पतर बंध होता है किन्तु अंत के पांचवें भाग में शून्य अर्थात् अल्पतर बंध नहीं होता है । इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है
पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में तीस अल्पतर बंध होते हैं, क्योंकि बाईस को बांधकर सत्रह का बंध करने पर ६x२=१२, तेरह का बंध करने पर ६x२