Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रदेशबंध का विवेचन पूर्ण करने के पहले यह भी स्पष्ट करते हैं कि पूर्वोक्त प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध में से अनेक प्रकार के प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध के कारण योगस्थान हैं । अनेक प्रकार के स्थितिबंध के कारण स्थितिबंध-अध्यवसायस्थान हैं तथा अनेक प्रकार के अनुभागंध के कारण मनुभाग अन्त्यदासास स्थान हैं। अतः अब योगस्थान और उनके कार्यों का परस्पर में अल्पबहुत्व बतलाते हैं।
सेडिअसंखिजंसे जोगट्टाणाणि पर्याडभिया। ठिबंधज्यवसायाणभागठाणा असंखगणा ॥६॥ तत्तो कम्मपएसा अणंतगुणिया तओ रसच्छेया ।
शब्दार्थ सेडिअसंणिज्यसे-श्रेणि के असंख्यातवें भाग, जोगडाणागि-योगस्थान, पर्याडदिइभेया-प्रकृतिभेद, स्थितिभेद, शिबंधावसाया--स्थितिबंध के अध्यवसायस्थान; अगुभागठाणा
–अनुभाग बंध के अध्यबसायस्थान, असंखगुणाः असंख्यात गुणे, . सत्तो--उनसे भी, कम्मपएसा-कर्मप्रदेश, कर्म के स्कंध, अणंतगु
मोहाउयवज्जाणं णुक्कोसो साझ्याइओ होइ । साई अधुवा सेसा आउगमोहाण सवेषि ।। नाणतरायनिद्दा अणवज्जकसाय भयदुगुकाण । दसणचउपयलाणं चउब्बिगप्पो अणुक्कोसो ॥ सेसा साई अधुवा सम्वे सम्वाण सेसपयईणं ।
-पंचसंग्रह २६०, २६५, २६६ छण्हपि अणुक्कस्सो पदेसचंधो दु चदुवियप्पो दु । सेसतिये दुवियप्पो मोहाऊणं च दुविधप्पो । तीसराहमणक्कस्सो उत्तरपयडीसु चउविहो । बंधो। सेसतिये दुवियप्पो सेसचउक्केवि दुवियप्पो |
-~ो कर्मकार २०७, २०६