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पंचम कर्मग्रन्थ
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कि अयोगि अवस्था में जिन कर्मों का उदय नहीं होता है, उनकी स्थिति एक समय कम होती है।
सयोगकेवली गुणस्थान के अन्तिम समय में साता या असाता वेदनीय में से कोई एक बेदनीय, औदारिक, तेजस, कार्मण, छह संस्थान, प्रथम संहनन, औदारिक अंगोपांग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, पराधात, उच्छ्वास, शुभ और अशुभ विहायोगति, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर और निर्माण, इन तीस प्रकृतियों के उदय और उदीरणा का विच्छेद हो जाता है और उसके अनन्तर समय में अयोगकेवली हो जाते हैं। ____ इस अयोगकेवली अवस्था में ब्युपरतक्रियाप्रतिपाती ध्यान को करते हैं। यहां स्थितिघात आदि नहीं होता है, अतः जिन कर्मों का उदय होता है, उनको तो स्थिति का क्षय होने से अनुभव करके नष्ट कर देते हैं, किन्तु जिन प्रकृतियों का उदय नहीं होता, उनका स्तिबुकसंक्रम के द्वारा वेद्यमान प्रकृतियों में संक्रम करके अयोगि अवस्था के उपांत समय तक वेदन करते हैं और उपांत समय में ७२ का और अंत समय में १३ प्रकृतियों का क्षय करके निराकर, निरंजन होकर नित्य सुख के धाम मोक्ष को प्राप्त करते हैं।'
इस प्रकार से क्षपक श्रणि का स्वरूप समझना चाहिये । उसका दिग्दर्शक विवरण यह है
१ सपक श्रेणि का विशेष विवरण परिशिष्ट में देखिये ।