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परिशिष्ट
१. पंचम कर्मग्रन्थ की मूल गाथायें
२. कर्मों की बन्ध, उदय, सत्ता प्रकृतियों की संख्या में भिन्नता का
कारण
३. मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों में भूयस्कार आदि बन्ध
४. कर्म प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध,
५. आयुकर्म के अबाधाकाल का स्पष्टीकरण
६. योगस्थानों का विवेचन
७. ग्रहण किये गये कर्मस्कन्धों को कर्म प्रकृतियों में विभाजित करने की रीति
८. उत्तर प्रकृतियों में पुद्गलद्रव्य के वितरण तथा होनाधिकता का विवेचन
#. पल्यों को भरने में लिए जाने वाले वालाग्रों के बारे में अनुयोगद्वार सूत्र आदि का कथन
१०. दिगम्बर साहित्य में पल्योपम का वर्णन
११. दिगम्बर ग्रन्थों में पुद्गल परावर्ती का वर्णन
१२. उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबंध के स्वामियों का गो० कर्मकांड में आगत वर्णन
१३. गुणश्रेणि के विधान का स्पष्टीकरण
१४. क्षपक श्रेणि के विधान का स्पष्टीकरण
१५. पंचम कर्मग्रन्थ की गाथाओं की अकारानुक्रमणिका