Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
拳就要
बंध के सादि और अत्र विकल्प होते हैं। क्योंकि पूर्व में अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध को बतलाते हुए सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में उत्कृष्ट प्रदेशबंध होने का संकेत कर आये हैं। वह उत्कृष्ट प्रदेशबंध पहले पहल होता है, अतः सादि है और पुनः अनुत्कृष्ट बंध के होने पर पुनः नहीं होता है, अतः अध्रुव है । उक्त छह कर्मों का जघन्य प्रदेशबंध सूक्ष्म निगोदिया अपर्याप्तक जीव भग के प्रथम समय में करता है और उसके बाद योग की वृद्धि हो जाने पर अजघन्य प्रदेशबंध करता है, कालान्तर में पुनः जघन्य बंध करता है । इस प्रकार ये दोनों भी सादि और अद्भुत्र होते हैं ।
ज्ञानावरण आदि छह मूल प्रकृतियों से शेष रहे मोहनीय और आयु कर्म के चारों बंधों के सादि और अध्रुव, दो ही विकल्प होते हैं । आयु कर्म तो बंधी है अतः उसके चारों प्रदेशबंध सादि और अत्र ही होते हैं। मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट प्रदेशबंध नौवें गुणस्थान तक के उत्कृष्ट योग वाले जीव करते हैं और उत्कृष्ट के बाद अनुत्कृष्ट तथा अनुत्कृष्ट के बाद उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है। इसीलिये ये दोनों बंध सादि और अव हैं। इसी प्रकार मोहनीय का जघन्य बंध सूक्ष्म निगोदिया जीव करता है। उसके भी जघन्य के बाद अजघन्य तथा अजघन्य के बाद जघन्य बंध करने के कारण दोनों बंध सादि और अध्रुव होते हैं।
इस प्रकार मूल और उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट आदि प्रदेशबंधों के सादि वगैरह का क्रम जानना चाहिए ।"
१ पंचसंग्रह और गो० कर्मकांड में प्रदेशबंध के सादि वगैरह मंगों का कर्मग्रन्थ के अनुरूप वर्णन किया गया है । तुलना के लिये उक्त अंगों को यहाँ उद्धृत करते हैं
(शेषले पृष्ठ पर )