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पंचम कर्मग्रन्थ
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लोक की उक्त लंबाई-चौड़ाई आदि का सारांश यह है कि नीचे जहां सातवां नरक है वहां सात राज चौड़ा है और वहां से घटता-घटता सात राजू ऊपर आने पर जहां पहला नरक है, वहां एक राजू चौड़ाई है। उसके बाद क्रमशः बढ़ते-बढ़ते पांचवें देवलोक के पास चौड़ाई पाँच राजू और उसके बाद क्रमशः घटते-घटते अंतिम भाग में एक राजू चौड़ाई है। संपूर्ण लोक की लंबाई चौदह राजू और अधिकतम चौडाई गाल राजु नशा जय चौहाई एल है।
यह लोक बस और स्थावर जीवों से खचाखच भरा हुआ है । बस जीव तो असनाड़ी में ही रहते हैं लेकिन स्थावर जीव अस और स्थावर दोनों ही नाड़ियों में रहते हैं । लोक के ऊपर से नीचे तक चौदह राजू लंबे और एक राजू चौड़े ठीक बीच के आकाश प्रदेशों को प्रसनाड़ी कहते हैं और शेष लोक स्थावरनाड़ी कहलाता है । ____ इस चौदह राजू ऊँचे तथा अधिकतम सात राजू और न्यूनतम एक राजु लंबे-चौड़े लोक की धनाकार कल्पना की जाय तो सात राज़ ऊँचाई, सात राजू लंबाई और सात राजू चौड़ाई होगी। क्योंकि समस्त लोक के एक-एक राजू प्रमाण टुकड़े किये जायें तो ३४३ टुकड़े होते हैं। उनमें से अधोलोक के १६६ और ऊर्वलोक के १४७ धनराजू हैं और इनका घनमूल ७ होता है। अतः पनीकृत लोक का प्रमाण सात राजू है और घनराजु ३४३ होते हैं।
इसके समीकरण करने की रीति इस प्रकार है-अधोलोक के नीचे का विस्तार सात राजू है और दोनों ओर से घटते-घटते सात राज की ऊँचाई पर मध्य लोक के पास वह एक राजु शेष रहता है। इस अधोलोक के बीच में से दो 'समान भाग करके यदि दोनों भागों को उलटकर बराबर-बराबर रखा जाये तो उसका विस्तार नीचे की ओर