Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रथ
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घनोदधिं घनवात से आवृत है और इसका रूप कुछ पतले पिघले हुए घी के समान है । लम्बाई-चौढाई और परिधि असंख्यात योजन की है। यह घनवात भी तनुवात से आवृत है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई परिधि तथा मध्य की मोटाई असंख्यात योजन की है। इसका रूप तपे हुए घी के समान समझना चाहिए ।
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तनुवात के नीचे असंख्यात योजन प्रमाण आकाश है। इन घनोदधि, घनवात और तनुवात को उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है कि एक दूसरे के अन्दर रखे हुए लकड़ी के पात्र हों, उसी प्रकार ये तीनों वातवलय भी एक दूसरे में अवस्थित हैं। यानी धनोदधि छोटे पात्र जैसा, घनवात मध्यम पात्र जैसा और तनुवात बड़े पात्र जैसा है और उसके बाद आकाश है। इन तीन पात्रों में से जैसे सबसे छोटे पात्र में कोई पदार्थ रखा जाये, वैसे ही घनोदधिवलय के भीतर यह पृथ्वी अवस्थित है ।
शास्त्र में लोक का आकार 'सुप्रतिष्ठ संस्थान' वाला कहा है । सुप्रतिष्ठ संस्थान के आकार का रूप इस प्रकार होता है कि
जमीन पर एक सकोरा उलटा, उस पर दूसरा सकोरा सोधा और उस पर तीसरा सकोरा उलटा रखने से जो आकार बनता है, बहु सुप्रतिष्ठ संस्थान कहलाता है और यही आकार लोक का है ।
अनेक आचार्यों ने लोक का आकार विभिन्न रूपकों द्वारा भी समझाया है। जैसे कि लोक का आकार कटिप्रदेश पर हाथ रखकर तथा पैरों को पसार कर नृत्य करने वाले पुरुप के समान है । इसीलिये लोक को पुरुषाकार की उपमा दी है। कहीं-कहीं बेनासन पर रखे हुए मृदंग के समान लोक का आकार बतलाया है, इसी प्रकार की और दूसरी वस्तुयें जो जमीन में चौड़ी, मध्य में सकरी तथा ऊपर में चौड़ी और फिर सकरी हों और एक दूसरे पर रखा जान पर जसा उनका आकार बने, वह लोक का आकार बनेगा ।