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पंचम कर्मग्रन्प
उदय और उदीरणा का विच्छेद हो जाता है और अप्रत्याख्यानावरण व प्रत्याख्यानावरण मान का उपशम हो जाता है । उस समय में संज्वलन मान की प्रथम स्थितिगत एक आवलिका और एक समय कम दो आवलिका में बांधे गये ऊपर की स्थितिगत कर्मदलिकों को छोड़कर शेष दलिकों का उपशम हो जाता है। उसके बाद समय कम दो आवलिका में संज्वलन मान का उपशम करता है।
जिस समय में संज्वलन मान के बंध, उदय और उदीरणा का विच्छेद होता है, उसके अनन्तर समय से लेकर संञ्चलन माया की द्वितीय स्थिति से दलिकों को लेकर पूर्वोक्त प्रकार से प्रथम स्थिति करता है और उसी समय से लेकर तीनों माया का एक साथ उपशम करना प्रारम्भ करता है । संज्वलन माया की प्रथम स्थिति में समय कम तीन आवलिका शेष रहने पर अप्रत्याख्या. नावरण और प्रत्याख्यानावरण माया के दलिकों का संज्वलन माया में प्रक्षेप नहीं करता किन्तु संज्वलन लोभ में प्रक्षेप करता है और एक आवलिका शेष रहने पर संज्वलन माया के बन्ध, उदय और उदीरणा का विच्छेद हो जाता है तथा अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण माया का उपशम हो जाता है । उस समय में संज्वलन माया की प्रथम स्थितिगत एक आवलिका और समय कम दो आवलिका में बांधे गये ऊपर की स्थितिगत दलिकों को छोड़कर शेष का उपशम हो जाता है। उसके बाद समय कम दो आवलिका में संज्वलन माया का उपशम करता है।
जब संज्वलन माया के बंध, उदय और उदीरणा का विच्छेद होता है, उसके अनन्तर समय से लेकर संज्वलन लोभ की द्वित्तीय स्थिति से दलिकों को लेकर पूर्वोक्त प्रकार से प्रथम स्थिति करता है । लोभ का जितना वेदन काल होता है, उसके तीन भाग करके उनमें से दो भाग