Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 392
________________ पंचम कर्मेग्रन्थ णिपा - अनन्तगुणे, तक्ष उनसे भी रसच्छेया—रसच्छेद – रस अविभाग प्रतिच्छेद । गाथार्थ योगस्थान श्रोणि के असंख्यातवें भाग हैं। उनसे प्रकृतियों के भेद, स्थितिभेद, स्थितिबंध के अध्यवसायस्थान और अनुभाग बंध के अध्यवसायस्थान अनुक्रम से असंख्यात - गुणे, असंख्यातगुणे हैं। उनसे भी कर्म के स्कंध अनंतगुणे हैं और कर्म स्कंधों से भी रसच्छेद अनंतगुणे हैं । ५५ - विशेषार्थ — गाथा में बंध के भेदों और उनके कारणों का अल्पबहुत्व बतलाया है । इस निरूपण में निम्नलिखित सात चीजों का ग्रहण किया गया है (१) प्रकृतिभेद, (२) स्थितिभेद, (३) प्रदेशभेद, (४) रसच्छेद अर्थात् अनुभागभेद, (५) योगस्थान, (६) स्थितिबंध -अध्यवसायस्थान और (७) अनुभागबंध- अध्यवसायस्थान । इन सात भेदों में बंध के चार भेद और तीन उनके कारण भेद हैं। बंध के तो चार मेद माते हैं किन्तु कारण के तीन भेद मानने का कारण यह है कि प्रकृति और प्रदेश बंध का कारण एक हो है। इसीलिये कारण के भेद चार के बजाय तीन ही किये गये हैं। यहां इन सातों का अल्पबहुत्व बतलाया. है कि कौन किससे कम और कौन अधिक है। यानी सातों में से किसकी संख्या अधिक है और किसकी संख्या कम है । इस अल्पबहुत्व का कथन प्रारंभ करते हुए सर्व प्रथम बताया है कि योगस्थानों की संख्या श्रोणि के असंख्यातवें भाग है - सेठि असंखिज्जं से जोगट्ठाणाणि – अर्थात् श्रेणि के असंख्यातवें भाग में आकाश के जितने प्रदेश हैं उतने ही योगस्थान जानना चाहिये। यह पहले बतला आये हैं, कि वीर्य या शक्तिविशेष को योग कहते हैं और सबसे योग सूक्ष्म निग़ोदिया सन्ध्यपर्याप्तक औव को भव के प्रथम

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