Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबंध के स्वामियों का कथन करने के प्रसंग में निम्नलिखित बातों पर प्रकाश डाला गया है।
१ - जैसे अधिक द्रव्य की प्राप्ति के लिये भागीदारों का कम होना आवश्यक है, वैसे ही उत्कृष्ट प्रदेशबंध का कर्ता थोड़ी प्रकृतियों का बाँधने वाला होना चाहिये। क्योंकि पहले कर्मों के बटवारे में यह बतलाया जा चुका है कि एक रामण में जिका होता है, वे सब उन उन प्रकृतियों में विभाजित हो जाते हैं जिनका उस समय बंध होता है । इसीलिये यदि बंधने वाली प्रकृतियों की संख्या अधिक होगी तो बटवारे के समय उनको थोड़े-थोड़े प्रदेश मिलेंगे और यदि प्रकृतियों की संख्या कम होती है तो बटवारे में अधिक अधिक दलिक मिलते हैं।
२- अधिक प्राप्ति के लिये जैसे अधिक आय होना आवश्यक है, वैसे ही उत्कृष्ट प्रदेशबंध करने वाला उत्कृष्ट योग वाला होना चाहिये। क्योंकि प्रदेशबंध का कारण योग है और यदि योग तीव्र होता है तो अधिक संख्या में कर्मदलिकों का आत्मा के साथ सम्बन्ध होगा तथा योग मंद है तो कर्मदलिकों की संख्या में भी कमी रहती है । इसीलिये उत्कृष्ट प्रदेशबंध के लिये उत्कृष्ट योग का होना बत लाया है - उक्कड जोगी ।
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३-४ – उत्कृष्ट प्रदेशब॑ध के स्वामी के लिये तीसरी बात यह आवश्यक है कि - सन्निपज्जतो वह संज्ञी पर्याप्तक होना चाहिये। क्योंकि अपर्याप्तक जीव अल्प आयु और शक्ति वाला होता है, जिससे वह उत्कृष्ट प्रदेशबंध नहीं कर सकता। पर्याप्तक होने के साथ-साथ संज्ञी होना चाहिये। क्योंकि पर्याप्तक होकर यदि वह संज्ञी नहीं हुआ तो भी उत्कृष्ट प्रदेशबंध नहीं कर सकता है। असंज्ञी जीव की शक्ति भी अपरिपूर्ण रहती है ।