Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पतक
इसीलिये उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामित्व के कथन के प्रसंग में--- उत्कृष्ट योग होने पर उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है तथा संझी पर्याप्त को ही उत्कृष्ट योग होता है, यह बतलाने के लिये गाथा में 'उक्कड़जोगी व सनिपज्जत्तो' यह तीन सार्थक विशेषण दिये गये हैं । यद्यपि गाथा ५३-५४ में योगों का अल्पबहुत्व बतलाते हुए सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक को सबसे जघन्य और संज्ञी पर्याप्त को सबसे उत्कृष्ट योग बतलाया है । अतः 'उक्कइजोगी' कह देने से संज्ञी पर्याप्तक का बोध हो ही जाता है तथापि अधिक स्पष्टता के लिये 'सन्निपज्जत्तो' यह दो पद रखे गये हैं । उत्कृष्ट योग होने पर बहुत से जीव अधिक प्रकृतियों का संभ करते हैं. किन्त उत्कृष्ट योग के साथ थोड़ी प्रकृतियों का अंध होना आवश्यक है।
इससे विपरीत दशा में अर्थात् यदि बहुत प्रकृतियों का बंध करने वाला हो, योग भी मंद हो तथा अपर्याप्त असंशी हो तो जघन्य प्रदेशबंध करता है । इस प्रकार सामान्य से उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबंध के स्वामित्व के बारे में जानना चाहिये । ___अब मूल और उत्तर प्रकृतियों की अपेक्षा से उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामी बतलाते हैं।
मिच्छ अजयचउ आऊ बितिगुण विणु मोहि सत्त मिच्छाई छण्हं सतरस सुहमो अजया देसा बिलिकसाए ॥६॥
पंचसंयह और गो० कर्मकांड में भी उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबंध के स्वामी की यही योग्यतायें बतलाई हैं। यथा
अप्पसरपगइबंधे उस्कडजोगी उ सन्निपज्जत्तो।। कुणाई पएसुक्कोसं जहन्नयं तस्स वच्चासे । -पंचसंग्रह २६८ उक्कड़जोगो सण्णी पज्जत्तो पयडिब धमप्पदरो। कुणदि पये सुक्कसं जपणए जाण दिवरीयं ।। गो० कर्मकांर २१०