Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
३४४
शतक
कथन तो प्रकृतियों के नाम और उनके योग्य पात्र को बतलाते हुए कर दिया है। इनके अतिरिक्त शेष रही ६६ प्रकृतियों के लिये गाथा में बताया है कि - सेमा उक्कोसपएसगा मिच्छो-शेष रही प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध मिथ्यादृष्टि जीव करता है । जिसका विवरण इस प्रकार है__मनुष्यद्विक, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिकटिक, तेजस, कार्मण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, पराधात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिरद्विक, पुनितअयशाकानि और निर्माण इन पच्चीस प्रकृतियों के सिवाय शेष ४१ प्रकृतियां सम्यग्दृष्टि को बंधती ही नहीं है । उनमें से कुछ प्रकृतियां सासादन गुणस्थान में बंधती हैं किन्तु वहां उत्कृष्ट योग नहीं होता है, अतः ४१ प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध मिथ्याष्टि ही करता है।
उक्त पच्चीस प्रकृतियों में से औदारिक, तेजस, कार्मण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, बादर, प्रत्येक, अस्थिर, अशुभ, अयशःकीति, निर्माण, इन पन्द्रह प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध मामकर्म के तेईस प्रकृतिक बंधस्थान के बंधक जीवों के होता है और शेष दस प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध नामकर्म के पच्चीस प्रकृतिक बंधस्थान के बंधक जीवों को ही होता है, अन्य को नहीं और तेईस व पच्चीस का बंध मिथ्यादृष्टि को ही होता है । इसीलिये शेष पच्चीस अकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध उत्कृष्ट योग वाले मिथ्या दृष्टि जीव ही करते हैं।
इस प्रकार से समस्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामियों का निर्देश करने के बाद अब आगे की गाथा में जघन्य प्रदेशबन्ध के स्वामियों को बतलाते हैं।
सुमुणो कुन्नि असन्नी निरयलिगसुराउसुरविधिबुगं । सम्मो जिणं जहन्नं सुहमनिगोयाइखणि सेसा ॥३॥