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माग्रज
___ बादर और सूक्ष्म भावपुद्गल परावों में भी अन्य परावतों की तरह यह अन्तर समझना चाहिये कि कोई जीव सबसे जघन्य अनुभागबंधस्थान में मरण करके उसके बाद अनन्तकाल बीत जाने पर भी जब प्रथम अनुभागस्थान के अनन्तरवर्ती दूसरे अनुभागबंधस्थान में मरण करता है तो सूक्ष्म भावपुद्गल परावर्त में वह मरण गणना में लिया जाता है किन्तु अक्रम से होने वाले अनन्त अनन्त मरण गणना में नहीं लिये जाते हैं | इसी तरह कालान्तर में द्वितीय अनुभागबंधस्थान के अनन्तरवर्ती तीसरे अनुभागबंधस्थान में जब मरण करता है तो वह मरण गणना में लिया जाता है। चौथे, पांचवें आदि स्थानों के लिये भी यही क्रम समझना चाहिये । अर्थात् वादर में तो क्रम-अक्रम किसी भी प्रकारसे होने वाले मरणों की और सूक्ष्म में सिर्फ क्रम से होने वाले मरणों की गणना की जाती है।
इस प्रकार से बादर और सूक्ष्म पुदगल परावतों' का स्वरूप बत(क) पंचसंग्रह २१३७-४१ तक में भी इसी प्रकार द्रव्य आदि चारों पुद्गल परा. वों का स्वरूप, भेद आदिका वर्णन किया है। वे गाथायें इस प्रकार हैं
पोग्गल परिथट्टो इह दवाइ चविहो मुणेयचो । एक्केको पुण दुविहो बायरमुहमत्तभेएणं ॥ संसारमि अडतो जाव य कालेण फुसिय सच्वाण । इगु जो मुयइ बायर अग्नय रतणुष्टिो सुहुमो । लोगस्स पएसेसु अणंतरपरंपराविभत्तीहि । खेत्तमि बायगे सो सहमो 3 अणंतरमयस्स ॥ उम्सप्पिणिरामगम अणंन रपरंगराविभत्तीहि । कालम्मि वायरो मो मुहुमो उ अणंज्ञरमयस्स ।। अणुभागठाणेमु अणंतरपरंपराविभत्तीहि ।
भावमि बायरी सो मुहमो मध्येमनुक्रमसो ॥ (j दिगम्बर साहित्य में परावर्ती का वर्णन भिन्न रूप से किया गया है । उक्त
वर्णन परिशिष्ट में देखिये ।।