________________
पचम कर्मग्रन्थ
३२३
द्रव्यपुद्गल परावर्त के बारे में किन्हीं - किन्हीं आचार्यों का मत
है कि
अव इमो दध्याई ओराल विजयते कम्मे हि । नीसेसदव्य गहणंमि बायरो होइ परियो ॥"
एके तु आचार्या एवं व्यपुद्गलपरावर्त स्वरूप प्रतिपादयन्ति तथाहि यको जीवोऽनेकर्मवग्रहरौदारिकशरोरवं क्रियशरीर ते असणरीरकार्मणशरीरचतुष्टयरूपतया यथास्वं सकललोकयतिन सर्शम् पुद्गलान् परिणमय्य मुञ्चति तदा वाद द्रश्यपुदगलपरावर्ती भवति । यथा पुत्ररौदारिकावितुष्टयमध्यादेकेन केन चिच्छरीरेण सर्वपुद्गलान् परिणमस्य मुश्चति शेषशरीरपरिमितास्तु पुवगला न गृह्यन्ते एव तदा सूक्ष्मो द्रव्यपुद्गलपरावर्ती भवति ।"
- समस्त पुद्गल परमाणुओं को औदारिक, वैक्रिय, तेजस और कार्मण इन चार शरीर रूप ग्रहण करके छोड़ देने में जितना काल लगता है, उसे बादर द्रव्यपुद्गल परावर्त कहते हैं और समस्त पुद्गल परमाणुओं को उक्त चारों शरीरों में से किसी एक शरीर रूप परिणमा कर छोड़ देने में जितना काल लगता है, उतने काल को सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त कहते हैं ।
इस प्रकार से बादर और सूक्ष्म दोनों प्रकार के द्रव्यपुद्गल परावर्त के स्वरूप को बतलाने के बाद अब क्षेत्र, काल और भावपुद्गल परावर्ती का स्वरूप बतलाते हैं । द्रव्यपुद्गल परावर्त के समान ही क्षेत्र, काल और भाव पुद्गल परावर्ती में से प्रत्येक के सूक्ष्म और बादर यह दो-दो प्रकार हैं ।
सामान्य तौर पर जीव द्वारा लोकाकाश के समस्त प्रदेशों का
१ प्रवचन० गा० ४१
१
पंचम कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका, पृ० १०३