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पंचकर्मग्रन्थ
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का प्रमाण पूर्ववत् समझना चाहिये । उत्सेधांगुल से पांच सौ गुणा प्रमाणांगुल होता है । यही भरत चक्रवर्ती का आत्मांगुल है । '
इस प्रकार से पल्योपम के भेद और उनका स्वरूप जानना चाहिये। पूर्व में सासादन आदि गुणस्थानों का उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्त बतलाया गया है । अतः अब आगे तीन गाथाओं में पुद्गल परावर्त का स्वरूप स्पष्ट करते हैं ।
बच्चे खिले काले भावे चजह वह बायरो सुहुषो । होइ अणंशुरसप्पिणिपरिमानो पुग्गलवरट्ठो || ६ || उरलाइ सत्तगेणं एमजिउ मुयइ फुंसिय सम्धयन् । जत्तियकालि स धूलो दबे सुमो सगम्नयरा ॥८७॥ लोग एसोसप्पिणिसमया अणुभागबंषठाणा य । जह तह कममरणेणं पुट्ठा खित्ताइ यूलियरा ॥८८॥
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शब्दार्थ - दब्बे द्रव्यविषयक खिते - क्षेत्र विषयक, काले -काल विषयक, भावे-भाव विषयक, वजह बार प्रकार का ह - दो प्रकार का बायरो - बादर, सुमो – सूक्ष्म, होइ― होता है, अनंतुस्सप्पिणिपरिमाणो अनभ्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी प्रमाण, पुग्गलपरट्ठो - पुद्गल परावर्त ।
उरलाइसत्तगेणं — ओदारिक आदि सात वर्गणा रूप से, एगजिज – एक जीव, मुयइ – छोड़ दे, फुसिय—स्पर्श करके, परिण मित करके, सम्ब अणू- सभी परमाणुओं को, जतियकालि - जितने समय में, स - उतना फाल, यूलो-स्थूल, बादर, बध्ये द्रव्यपुद्गल परावर्त, सुमो - सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त समन्नयरा - सात में से किसी एक एक वर्गणा के द्वारा ।
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१ तत्त्वार्थं राजयातिक पृ० १४७-१४८
२ दिगम्बर साहित्य में किये गये पत्यों के वर्णन के लिये परिशिष्ट देखिये ।