Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रम्प
'दृष्टिवादोक्तद्रव्यमानोपयोगित्वाद् बालाग्रप्ररूपणाऽत्रप्रयोजनवतीति ।'
-- अनुयोगनार टीका पृ० १६३ __ अंगुल के भेदों की व्याख्या
उद्धारपल्योपम का स्वरूप बतलाने के प्रसंग में उत्सेघांगुल के द्वारा निष्पन्न एक योजन लम्बे, चौड़े, गहरे गड्ढे-पल्य को बनाने का संकेत किया था और उसी के अनुसन्धान में आत्मांगुल, उल्सेधांगुल और प्रमाणांगुल यह तीन अंगुल के भेद बतलाये हैं। यहाँ उनका स्वरूप समझाते हैं।
आस्गांगुल- ...पने अंगुरा बने या अपने शरीर की ऊंचाई १०८ अंगुल प्रमाण होती है। वह अंगुल उसका आत्मांगुल कहलाता है। इस अंगुल का प्रमाण सर्वदा एकसा नहीं रहता है, क्योंकि काल भेद से मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई घटती-बढ़ती रहती है ।
उत्सेधागुल-परमाणु दो प्रकार का होता है-एक निश्चय परमाणु और दूसरा व्यवहार परमाणु । अनन्त निश्चय परमाणुओं का एक ध्यबहार परमाणु होता है। यद्यपि वह व्यवहार परमाणु वास्तव में स्कन्ध है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से उसे परमाणु कह दिया जाता है, क्योंकि वह इतना मूक्ष्म होता है कि तीक्ष्ण-से-तीक्ष्ण शस्त्र के द्वारा भी इसका छेदन-भेदन नहीं हो सकता है, फिर भी माप के लिए इसको मूल कारण माना गया है । जो इस प्रकार है - अनन्त व्यवहार परमाणुओं की एक उन्श्लक्ष्ण-श्लक्षिणका और आठ उतश्लक्षण-श्लक्षिणका की एक श्लक्ष्ण-श्लक्ष्णिका होती है।' आठ श्लक्ष्ण-लविणका का एक
१ जीवसमास मूत्र में अनन्त जनशलान-पलक्षिणका को एक श्लक्ष्ण-श्लक्षिणका
बन लाई है, लेकिन आगमों में अनेक स्थानों पर अठगुनी ही बतलाई है। अत: यहां भी आगम के अनृमार कपन किया है।