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बादर क्षेत्रपल्य के बालानों में से प्रत्येक के असंख्यात खंड करके उन्हें इसी पल्प में पहले की तरह भरो। उस पल्य में वे खंड आकाश के जिन प्रदेशों करें और जि प्रो मोर्श गवारे, जन्में से प्रति समय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में स्पृष्ट और अस्पृष्ट सभी प्रदेशों का अपहरण किया जा सके, उतने समय को एक सूक्ष्म क्षेन्नपल्मोपम काल कहते हैं । दस कोटाकोटी सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम का एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम होता है । इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम के द्वारा दृष्टिवाद में द्रव्यों के प्रमाण का विचार तथा दृष्टिवाद में पृथ्वी, अप, तेज, वायु, प्रत्येक वनस्पति और त्रस इन छह काय के जोवों के प्रमाण का विचार किया जाता है
एएहिं सुहुमेहि खेतप सागरोषमेहि किं पओअणं ? एएहि सहमपलि० माग० दिट्ठिवाए दव्वा मविज्जति ।
... अनुयोगद्वार मूत्र १४. सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम काल के स्वरूप को ब्याख्या के प्रसंग में जिज्ञासु का प्रश्न है कि यदि बालानों से आकाश के स्पृष्ट और अस्पृष्ट सभी प्रदेश ग्रहण किये जाते हैं तो फिर बालानों का कोई प्रयोजन नहीं रहता है, क्योंकि उस दशा में पूर्वोक्त पल्य के अन्दर जितने प्रदेश हों उनके अपहरण करने से ही प्रयोजन सिद्ध हो जाता है। इसका समाधान यह है कि क्षेत्रपल्योपम के द्वारा दृष्टिबाद में द्रव्यों के प्रमाण का विचार किया जाता है। उनमें से कुछ द्रव्यों का प्रमाण तो उक्त बालानों से स्पृष्ट आकाश के प्रदेशों द्वारा मापा जाता है और कुछ का प्रमाण आकाश के अस्पृष्ट प्रदेशों से मापा जाता है । अतः दृष्टिवाद में वर्णित द्रव्यों के मान में उपयोगी होने के कारण बालापों का निर्देश करना सप्रयोजन ही है, निष्प्रयोजन नहीं है