Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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पुद्गल द्रव्य का ग्रहण किया गया है । क्योंकि एक तो प्रत्येक परिवर्तन के साथ पुद्गल शब्द लगा हुआ है और उसके ही द्रव्यपुद्गल परावर्त आदि चार भेद बतलाये हैं। दूसरे जीव के संसार भ्रमण का कारण पुद्गल द्रव्य ही है, संसार अवस्था में जीव उसके बिना रह ही नहीं सकता है । इसीलिये पुद्गल के सबसे छोटे अणु-परमाणु को यहां द्रव्य पद से माना है। आकाश के जितने भाग में वह परमाणु समाता है, उसे प्रदेश कहते हैं और वह प्रदेश लोकाकाश का ही एक अंश है, क्योंकि जीव लोकाकाश में ही रहता है । पुद्गल का एक परमाणु एक प्रदेश से उसी के समीपवर्ती दूसरे प्रदेश में जितने समय में पहुँचता है, उसे समय कहते हैं । यह काल का सबसे छोटा हिस्सा है । भाव से यहां अनुभाग बंध के कारणभूत कषाय रूप भाव लिये गये हैं। इन्हीं द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के परिवर्तन को लेकर चार परिवर्तन माने गये हैं।
यद्यपि द्रव्यपुद्गल परावर्त के सिवाय अन्य किसी भी परावर्त में पुद्गल का परावर्तन नहीं होता है, क्योंकि क्षेत्रपदगल परावर्त में क्षेत्र का, कालपुद्गल परावर्त में काल का और भावपुद्गल परावर्त में भाव का परावर्तन होता है, किन्तु पुद्गल परावर्त का काल अनन्त उर्पिणी और अवसर्पिणी काल के बराबर बतलाया है और क्षेत्र, काल और भाव परावर्त का काल भी अनन्त उत्सपिणी और अनन्त अवसर्पिणी होता है, अतः इन परावों की पुद्गल परावर्त संज्ञा रखी
पुद्गलानाम्-परमाणूनाम् ओसारिकाविरूपतया विवक्षितकशरीररूपतया वा सामस्स्येन परावतः परिणमनं यावति काले स तावान् काल: पुदगलपरावर्तः । इदं च शम्बस्य व्युत्पत्तिनिमित, अनेन च व्युत्पत्तिनिमित्तेन
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