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पंचकर्मग्रन्थ
बै०३
मुहूर्त से अधिक होती है। अतः स्थिति का घात कर देने से जो कर्मदलिक बहुत समय बाद उदय में आते हैं वे तुरन्त ही उदय में आने योग्य हो जाते हैं। जिन कर्मदलिकों की स्थिति कम हो जाती है उनमें से प्रति समय असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे दलिक ग्रहण करके उदय समय से लेकर ऊपर की ओर स्थापित कर दिये जाते हैं। कर्मदलिकों के निक्षेप करने का क्रम इस प्रकार होता है कि ऊपर की स्थिति से कर्मदलिकों को ग्रहण करके उनमें से उदय समय में थोड़े दलिकों का निक्षेप होता है, दूसरे समय में उससे असंख्यातगुणे दलिकों का दलिकों का निक्षेपण होता है। इसी प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल के अन्तिम समय तक प्रतिसमय असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे दलिकों का निक्षेपण किया जाता है।' अर्थात् पहले समय में जो दलिक ग्रहण किये जाते
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१ कर्मप्रकृति ( उपशमनाकरण) की १५वीं गाथा, उसकी प्राचीन चूर्ण तथा पंचसंग्रह में भी इसी प्रकार गुणश्रेणि का स्वरूप आदि बतलाया है। जो इस प्रकार है
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गुणसेठी निवखेव समये ममये असंखगुणणाए । असादुगाईरिसी सेस सेसे य निक्लेवो ॥
- कर्मप्रकृति उपशमनाकरण, गा० १५ प्रतिसमय असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे दलिकों के निक्षेपण करने को गुणश्रेणि कहते हैं। उसका काल बपूर्वकरण और अनिवलिकरण के काल से कुछ अधिक है । इस काल में से ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता है त्यों-त्यों ऊपर के शेष समयों में ही दलिकों का निक्षेपण किया जाता है । उवरिल्लाओ द्वितिउ पोग्गले घेसूण उदयसमये चोवा पचिति मितिसमये असंखेज्जगुणा एवं जाव अन्तोमुहृत्त ।
- कर्मप्रकृति चूर्णि
थाइ दलिये घेत्तु घेत्तु असंखणगुणाए । साहियदुकरणका उपमा स्य गुणसेठ | पंचसंग्रह ७४६