Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मप्रन्य पल्योपम काल कहते हैं । पल्योपम के तीन भेद हैं- उद्धारअद्धखित्तं पलिय-उद्धार पल्योपम, अद्धा पल्योपम और क्षेत्र पल्योपम । इसी प्रकार सागरोपम काल के भो तीन भेद हैं-उद्धार सागरोपम, अद्धा सागरोपम और क्षेत्र सागरोपम । इनमें से प्रत्येक पल्योपम और सपोपम दो-दो प्रकार का होता है- बादर और दूसरा सूक्ष्म ।' इनका स्वरूप क्रमशः आगे स्पष्ट किया जा रहा है।
गाथा ४०, ४१ में क्षुद्रभव का प्रमाण बतलाने के प्रसंग में प्राचीन कालगणना का संक्षेप में निर्देश करते हुए समय, आवलिका, सच्चबास, प्राण, स्तोक, लव और मुहूर्त का प्रमाण बतलाया है । उसके बाद ३० मुहूर्त का एक दिन-रात, पन्द्रह दिन का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन, दो अयन का एक वर्ष प्रसिद्ध हैं और वर्षों की अमुक-अमुक संख्या को लेकर युग, शताब्द आदि संज्ञायें प्रसिद्ध हैं। उनके ऊपर प्राचीन काल में जो संज्ञायें निर्धारित की गई हैं, वे अनुयोगद्वार सूत्र के अनुसार इस प्रकार है--- ___८४ लाख वर्ष का एक पूर्वांग, ८४ लाख पूर्वांग का एक पूर्व, २४ लाख पूर्व का त्रुटितांग, ८४ लाख त्रुटितांग का एक त्रुटित, ८४ लाख त्रुटित का एक अडडांग, ८४ लाख अडडांग का एक अडड । इसी प्रकार क्रमशः अवांग, अवक, हुह अंग, हुहु, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पत्र, नलिनांग, नलिन, अर्थनिमूरांग, अर्थनिपूर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रमुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चुलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहे. लिका, ये उनरोत्तर ८४ लाख गुणे होते हैं । इन संज्ञाओं को बतलाकर
१ अनुयोगद्वार सूत्र में सूक्ष्म और व्यवहारिक भेद किये हैं। २ ये संज्ञायें अनुयोगद्वार सूत्र (गा० १२७, मूत्र १३८) के अनुसार ही गई हैं । ज्योतिष्क रण्ड के अनुसार उनका कम इस प्रकार है-- ८४ लाख
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