Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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घातक
___ आयुकर्म के जघन्य, उल्कष्ट और अनुहट अनुभाग में शादि
और अध्रुव ये दो ही विकल्प होते हैं । क्योंकि भुपयमान आयु के विभाग में ही आयु कर्म का बंध होता है जिससे उसका जघन्यादि रूप अनुभाग बंध सादि है और अन्तमुहर्त के बाद उस बंध के अवश्य रुक जाने से अध्रुव है । इस प्रकार आयुकर्म के जघन्य आदि अनुभाग बंधों के सादि और अध्रुव प्रकार समझना चाहिये।
इस प्रकार से मूल एवं उत्तर प्रकृतियों में उत्कृष्ट आदि अनुभाग बंधों के सादि आदि भंगों को जानना चाहिये ।' अब अनुभाग बंध का वर्णन करने के पश्चात आगे प्रदेशबंध का विवेचन प्रारम्भ करते हैं। प्रदेशबंध के प्रारम्भ में सर्वप्रथम वर्गणाओं का निरूपण करते हैं । प्रवेशबंध
...इगदुगणुगाई जा अभवणंतगुणियानू । खंघा उरलोधियवग्गणा उ तह अगहणतरिया ॥७५॥
शब्दार्थ--इगडुगणुगाह-एकाणुक, हमणुक नादि, जा--यावत्, गक अनवणताणिया – अभध्य में अनंत गुणे परमाणु वाला खंधा-फ, उरसानियवग्गणा---औदारिक के योग्य वर्गणा, तह...-तथा, अगहणंतरिया-प्रणयोग्य वर्गणा के बीच अग्रहणयोग्य वर्गणा ।
गाथार्ष- एकाणुक, यणक आदि से लेकर अभव्य जीवों से भी अनन्तगुणे परमाणु वाले स्कंधों तक ही औदारिक की
गो० कर्मकांड में अनुभाग बंध्न के जघन्य, अजघन्य आवि प्रकारों में सादि आदि का विवार दो गाथाओं में किया गया है। एक में मूल प्रकृतियों की अपेक्षा, दूसरी में उत्तर प्रकृतियों की अपेक्षा । उक्त विचार कर्मग्रंथ के समान है। गाथायें परिशिष्ट में देखिये ।