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मतक
दुगंधपलबन्नरमझम्मनधदलं' वे कर्मस्कन्ध अन्तिम चार स्पर्श, दो गंध, पांच वर्ण और पांच रस वाले होते है। अब आगे उनकी दूसरी विगपना का वर्णन करते हैं कि वे कर्मस्कन्ध · मजियणंतगुणरनं मत्र जोबराशि से अनन्तगृणे रस के धारक होते हैं। यहां ग्स का अर्थ खट्टे, मीठे आदि पांच प्रकार के रम नहीं किन्तु उन कर्मस्कन्धों में शुभाशुभ फल देने को शक्ति है | यह रस प्रत्येक पुदगल में पाया जाता है । जिस तरह पुद्गल द्रव्य के सबसे छोटे अंश को परमाणु कहते हैं, उसी तरह शक्ति के सबसे छोटे अंश को रसाण कहते हैं । ये रमाण बुद्धि के द्वारा खण्ड किंत्र जाने से बनते हैं। क्योंकि जैसे पुद्गल द्वन्ध के स्कन्या के टुकड़े किये जा सकते है वैसे उसके अन्दर रहने वाले गुणों के टुकड़े नहीं किये जा सकते है। फिर भी हम दृश्यमान बस्तुओं में गणो को होनाधिकता को युद्ध के द्वारा महज में ही जान लेते हैं | जस कि मैंस, गाय और बकरी का दुध हमारे सामने रस्त्रा जाये तो उसकी परीक्षा कर कह देते हैं कि भैस के दूध में चिक्रालाई अधिक है और गाय के दूध में उसमे कम तथा बकरी के दूध में नो चिकनाई नही-जैसो है। इस प्रकार से बद्यपि चिकनाई गुण होने से उसके अलग-अलग खण्ड तो नहीं किये जा सकते हैं किन्तु उसकी तरतमता का ज्ञान किया जाता है | यह तरतमता ही इस बात को सिद्ध करती
१ रमाणु को गुणाण या भावाणु भी कहते हैं और ये बुद्धि के द्वारा वण्ड किये जाने पर बनते हैं। जमा कि पचमग्रह में लिखा है.....
पश्चण्ड सरीराणं परमाणण मईए अनिमागो।
करिष्यमाणं गसो गुणाण भावाणु या हानि ।।४१७॥ पांच शरीरों के योग्य परमाणुओं की इस. शक्ति का बुद्धि के हाग खण्ड करने पर जो अविभागी एक अंश होता है, उसे गुणाणु या भावाणु कहते हैं।