Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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ऐसा नहीं होता है कि आत्मा के अमुक हिस्से से ही कर्मों का ग्रहण किया जाता हो। इसी बात को बतलाने के लिए गाथा में कहा हैनियस एस गइ जिउ-बानी जीव अपने अमुक हिस्से द्वारा ही किसी निश्चित क्षेत्र में स्थिति कर्मस्कन्धों का ग्रहण नहीं करके समस्त आत्म-प्रदेशों द्वारा कर्मों का ग्रहण करता है ।
इस प्रकार से जीव के द्वारा ग्रहण किये जाने वाले कर्मस्कन्धों का स्वरूप और उनके ग्रहण करने की प्रक्रिया आदि का कथन करने के पश्चात अब आगे यह स्पष्ट करते हैं कि जीव द्वारा ग्रहण किये गये atra का किस क्रम से विभाग होता है ।
थेवो आज तदसो नामे गोए समो अहिउ ॥ ७६ ॥ विग्धावरणं मोहे सध्वोवरि वेवशोध जेणप्पे तस्स फुडनं न हबब टिईबिसेसेण सेसाणं ||८०|| शब्दार्थ... बेबी - सबसे आज आयुकर्म का
अल्प,
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तदसो - उसका अंश नामे नामकर्म का गोए- गोत्रकर्म का सो समान अहिउ विशेषाधिक, बिग्यावरण अन्तरायें और का मोहे मोह का सहयोवरि सबसे अधिक,
वेय
गौय वेदनीय कर्म का, जेण जिस कारण मे अप्पे अल्पदलिक
लस्स
होने पर अनुभत्र लब
नं. साणं
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उसका ( वेदनीय का) फुडत
नहीं होता है, सिविसेसेण
कर्मों का ।
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स्पष्ट रीति से
स्थिति की अपेक्षा
थोड़ा है। नाम किन्तु आयुकर्म
आयुकर्म का हिस्सा सबसे और गांव कर्म का भाग आपस में समान है के भाग से अधिक है, अन्तराय, ज्ञानावरण और दर्शनावरण का हिस्सा आपस में समान है किन्तु नाम और गोत्र के हिस्से से अधिक है। मोहनीय का हिस्सा उससे अधिक है और