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पचम बर्मग्रन्स
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होते हैं और ग्यारहवें आदि गुणस्थानों से एक सातावेदनोय कर्म का बंध होता है । अतः उस समय ग्रहण किये हए कर्मस्कन्ध उस एक कर्म रूप ही हो जाते हैं।
इस प्रकार ग्रहण किये हुए कर्मस्कन्धों का आठों कर्मों में विभाजित होने का क्रम समझना चाहिये। अब प्रत्येक कर्म को मिलने वाले हिस्से का स्पष्टोकरण करते हैं कि अपनी-अपनी कालस्थिति के अनुसार प्रत्येक कर्म को ग्रहण किये हाए कर्मस्कन्धा का हिस्सा मिनता है। यानी जिस कर्म की स्थिति कम है तो उसे कम और अधिक स्थिति है तो उसे अधिक हिम्सा मिलेगा । लकिन यह मामान्य नियम वेदनीय कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों पर लागू होता है। वेदनीय कर्म को अधिक हिस्सा मिलने के कारण को आगे स्पष्ट किया जा रहा है।
सबसे कम स्थिति आयुकर्म की होने से सर्वप्रथम आयुकम से कर्मम्कन्धों के विभाजन को स्पष्ट किया जा रहा है कि 'थेवो आउ' आयुकर्म का भाग सबस थोड़ा है। इसका कारण यह है कि आयुकर्म की स्थिति सिर्फ तेतीस सागर है जबकि नाम, गोत्र आदि शेष सात कर्मों में से किसी की बीस कोड़ाकोड़ी सागर, किसी को नीम कोड़ाकोड़ी सागर और किसी की सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर की उत्कृष्ट स्थिति है । अतः अन्य कर्मों की स्थिति की अपेक्षा आयुकम की स्थिति सबसे कम होने से आयुकर्म को ग्रहण किये गये कर्मस्कन्धों का सबस कम भाग मिलता है।
आयुक्रम से नाम और गोत्र कर्म का हिस्सा अधिक है। क्योंकि आयुकर्न की स्थिति तो सिर्फ तेतीस सागर हो है, जबकि नाम और गोत्र कर्म की स्थिति बोस कोडाकोड़ी सागर प्रमाण है । नाम और गोत्र कर्म की स्थिति समान है अतः उन्हें हिस्सा भी बराबर-बराबर मिलना है-नामे गोए समो। अन्तराय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्मों को नाम