Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
इस प्रकार से एक परमाणु में एक रूप, एक रस, एक गंध और अंत के चार स्पर्शो में से दो स्पर्श होते हैं किन्तु इन परमाणुओं के समूह से जो स्कन्ध तैयार होते हैं, पांचों गंग और चार स्पर्श हो सकते हैं। क्योंकि उस स्कन्ध में बहुत से परमाणु होते हैं और उन परमाणुओं में से कोई किसी रूप वाला, कोई किसो रस वाला कोई किसी गंध वाला होता है तथा किसी परमाणु में अंत के चार स्पर्शो शीत-उष्ण और स्निग्ध-रूक्ष में से स्निग्ध और उष्ण स्पर्श पाया जाता है और किसी में रूक्ष और शीत स्पर्श पाया जाता है । इसीलिये कर्मस्कन्धों को पंच वर्ण, पंच रस, दो गंध और चार स्पर्शं वाला कहा जाता है। इसी कारण ग्रन्थकार ने कर्मस्कन्ध को अंत के चार स्पर्श' दो गंध, पांच वर्ण और पांच रस वाला बतलाया है।
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कर्मस्कन्धों को चतुःस्पर्शी कहने का कारण यह है कि स्पर्श के जो आठ भेद बतलाये गये हैं उनमें से आहारक शरीर के योग्य ग्रहण वर्गणा तक के स्कन्धों में तो आठों स्पर्श पाये जाते हैं किन्तु उससे
उत्पन्न करने वाला होने से कारण है। उससे छोटी कुमरी कोई वस्तु नहीं है, अत: वह अन्त्य है। सूक्ष्म है. नित्य है तथा एक रस, एक गंध, एक वर्ण और दो स्पर्श वाला है। उसके कार्य को देखकर उसका अनुमान ही किया जा सकता है किन्तु प्रत्यक्ष नहीं होता है ।
परमाणु में शीत और उष्ण में से एक तथा स्निग्ध और रूक्ष में से एक, इस प्रकार दो स्पर्श होते हैं ।
१ कर्मग्रन्थ को स्वोपज टीका में लिखा है कि बृहत्शतक की टीका में बतलाया है कि कर्म स्कन्ध में मृदु और लघु स्पर्श तो अवश्य रहते हैं । इनके सिवाय स्निग्ध, उष्ण अथवा स्निग्ध, शीत अथचा रूक्ष, उष्ण अथवा क्ष, शीव में से दो स्वर्ण और रहते हैं। इसीलिये एक कर्मस्कन्ध में चार स्पर्श बतलाये जाते हैं ।