Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
२२ माणुओं का संजात होता है त्यों-त्यों उनका सूक्ष्म, सूक्ष्मतर रूप परि माण होता है।
औदारिक आदि बर्गणाओं को अवगाहना जो उत्तरोत्तर होन-होन अंगुल के असंख्यात भाग पाहो है वह पुर्व को अपेक्षा क्रम से एक के बाद दुमरी उत्तरोनर असंख्यातवां भाग होन समझना चाहिये । इस न्युलतर की वजह से ही अल्प परमाणु वाले औदारिक शरीर के दिखने पर भी उसके मात्र विद्यमान रहने वाले तैजस और कामण शरीर उससे कई गने परमाणु वाले होने पर भी दिखाई नहीं देते हैं।
तेजस बर्गणा के बाद भाषा, श्वासोश्वास और मनोवर्गणा का उल्लेख करके मनसे अंत में कार्मण वर्गणा को रखा है, इसका कारण यह है कि त जम्म वर्गणा से भी भाषा आदि वर्गणायें अधिक सुक्ष्म हैं । अथात् तैजस शरीर को ग्रहणयोग्य वर्गणाआ से वे बर्मणायें अधिक सूक्ष्म हैं जो बातचीत करते समय शब्द रूप परिणत होती हैं, उनसे भी ये वर्गणायें सूक्ष्म हैं जो श्वासोच्छ्वास रूप परिणत होती है । श्वासोच्छबास वर्गणा से भी मानसिक चिन्तन का आधार बनने वाला मनोवर्गणायें और अधिक सूक्ष्म हैं। कर्मवर्गणा मनोवर्गणा से भी सूक्ष्म हैं। इससे यह अनुमान हो जाए कि वे कितनी अधिक सूक्ष्म है किन्तु उनमें परमाणुओं की संख्या कितनी अधिक होती है। ___ औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य और अग्रहणयोग्य वर्गणाओं का विववेचन पूर्व गाथा में किया जा चुका है । शेष रही वैक्रिय आदि की ग्रहणयोग्य और अग्रहणयोग्य वर्गणाओं को यहां स्पष्ट करते हैं। ___औदारिक शरीर की अग्रहणयोग्य' उत्कृष्ट बर्गणा के स्कंधों के परमाणुओं से एक अधिक परमाणु जिन स्कंधों में पाये जाते हैं उन स्कंधों की समूह रूप वर्गणा वैनिय शरीर को ग्रहणयोग्य जघन्य वर्गणा होती है । इस जघन्य वर्गणा के स्कंध के प्रदेशों से एक अधिक प्रदेश जिस-जिस स्कंध में पाया जाता है उनका समूह रूप दूसरी