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जघन्य वर्गणा से सिद्ध राशि के अनन्तवें भाग गुणित है और ग्राह्य aणा की उत्कृष्ट वर्गणा अपनी जघन्य वर्गणा से अनन्तवें भाग अधिक है ।
यहां पर वर्गणाओं के सोलह भेद' बताने और उनके कथन करने का उद्देश्य यही है कि जो चीज कर्म रूप परिणत होती है, उसके स्वरूप की रूपरेखा दृष्टि में आ जाये ।
ग्रहणयोग्य वर्गणाओं का स्वरूप और उनकी अवगाहना का प्रमाण बतलाकर अब आगे की गाथा में अग्रहण वर्मणाओं के परमाण का कथन करते हैं ।
इक्किककहिया सिद्धाणंतसा अंतरेसु अहणा । सत्य जहन्नुचिया नियतं पहिया जिट्टा ॥७७॥
शतक
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शब्दार्थ इषिकपकहिया एक एक परमाणु द्वारा अधिक सिद्धाणंसा मित्रों के अनंत भाग अंतरेतु - अन्तराल में अग्गहणाग्रहणयोग्य वर्गणा सत्वत्थ सर्व वर्गणाओं में, जहानचिया जघन्य ग्रहण चर्मणा से नियणसं साहिया अपने अनन्तमें
भाग अधिक, जिड़ा उत्कृष्ट वर्गणा ।
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१ पंचसंग्रह में भी कर्मग्रन्थ के समान ही वर्गणाओं का निरूपण किया है । १६ वर्गणाओं से आगे की गंणाओं को इस प्रकार बताया हैकम्मर धुवेरसुण्ण पत्तंवसृष्णवामरिया |
सुणा सहमा सुष्णा महबंधी सगुणनाभाओ । — -करण १६ कर्मणा हे कपर वर्गणा अभूतत्रणा शुन्यवर्गणा प्रत्येकअरीश्वर्गंणा, शुन्यत्रर्गणा, बादर निगोदवर्गणा शून्यवगंणा सूक्ष्मनियोदवर्ग शून्यणा और महास्वध वगंणा होती हैं ।
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कर्म प्रकृति और गो० जीवकांड में भी कुछ सामान्य से नामभेद के साथ यही गंणायें कही हैं।