Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम फर्म ग्रन्थ
ग्रहणयोग्य वर्गणा होती है तथा एफ-एक परमाणु की वृद्धि से ग्रहणयोग्य वर्गणा से अन्तरित अग्रहणयोग्य वर्गणा होती है।
विशेषार्य-यह लोक परमाणु और स्कंध रूप पुद्गलों से ठसाठस भरा हुआ है और पुद्गलकाय अनेक वर्गणाओं में विभाजित है, जिनमें एक कर्मवर्ग भी है। ये नर्ममा जीम के योग और कषाय का निमित्त पाकर कर्म रूप परिणत हो जाती हैं । पुद्गल के एक परमाणु के अवगाहस्थान को प्रदेश कहते हैं। अतः कर्म रूप परिणत हुए पुद्गल स्कंधों का परिमाण परमाणु द्वारा आंका जाता है कि अमुक समय में इतने परमाणु वाले पुद्गलस्कन्ध अमुक जीव को कर्म रूप में परिणत हुए हैं, इसी को प्रदेशबंध कहते है । अतः प्रदेशबंध का स्वरूप समझने के पूर्व कर्मवर्गणा का ज्ञान होना जरूरी है। कर्मवर्गणा का स्वरूप समझने के लिए भी उसके पूर्व की औदारिक आदि वर्गणाओं का स्वरूप जान लिया जाये। इसीलिये उन-उन वर्गणाओं का भी स्वरूप समझना चाहिये । इस कारण औदारिक आदि वर्गणाओं का यहां स्वरूप कहते हैं।
ये औदारिक आदि वर्गणायें दो प्रकार की होती हैं-ग्रहणयोग्य, अग्रहणयोग्य । अग्रहणवर्गणा को आदि लेकर कर्मवर्गणा तक वर्गणाओं का स्वरूप गाथा में स्पष्ट किया जा रहा है।
समान जातीय पुद्गलों के समूह को वर्गणा' कहते हैं । ये वर्गणार्य
१ कर्मग्रन्थ की दीका में स्वजातीय स्कंधों के समूह का नाम वर्गणा कहा है।
जबकि कर्मप्रकृति की टोका में स्कंध और वर्गणा को एकार्थक कहा है। क्योंकि स्कंध - वर्गणा की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग फही है । यदि जातीय स्कंधों के समूह को वर्गणा कही जाये तो उसके लोक
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