Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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भाग अधिक परमाणु बाली औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा होती है । इस अनन्तवें भाग में अनन्त परमाणु होते हैं । अतः जघन्य वर्गणा से लेकर उत्कृष्ट वर्गणा पर्यन्त अनन्त वर्गणायें औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य जानना चाहिये ।
औदारिक शरीर की उत्कृष्ट वर्गणा से ऊपर एक-एक परमाणु बरते स्कन्धों से बनने वाली वर्गणार्ये औदारिक की अपेक्षा से अधिक प्रदेश वाली और सूक्ष्म होती हैं, जिससे औदारिक के ग्रहण-योग्य नहीं होती हैं और जिन स्कन्धों से वैक्रिय शरीर बनता है. उनकी अपेक्षा से अल्प प्रदेश बाली और स्थूल होती हैं जिससे वे वैक्रिय शरीर के ग्रहणयोग्य नहीं होती हैं । इस प्रकार औदारिक शरीर की उत्कृष्ट वर्गणा के ऊपर एक-एक परमाणु बढ़ते स्कंधों की अनन्त अग्रहणयोग्य बर्गणा होती हैं । जैसे औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य जघन्य वर्गणा से उसी की उत्कृष्ट वर्गणा अनंत भाग अधिक है, वैसे ही अग्रहणयोग्य जत्रन्य वर्गणा से उसको उत्कृष्ट वर्गणा अनंतगृणी है । इस गुणाकार का प्रमाण अभत्र्य राशि से अनंतगणा और सिद्धराशि का अनंतवां भाग है।
इस अग्रहणयोग्य वर्गणा के ऊपर पुनः ग्रहणयोग्य वर्गणा आती है और ग्रहणयोग्य वर्गणा के ऊपर अग्रहणयोग्य वर्गणा ! इस प्रकार ये दोनों एक दूसरे से अन्तरित हैं।
इस प्रकार से औदारिक शरीर की प्रहणयोग्य और अग्रहणयोग्य वर्गणाओं का कथन करने के बाद बैंक्रिय आदि की महणयोग्य, अग्रहणयोग्य वर्गणाओं का स्पष्टीकरण करते हैं।
एमेष विवाहारतेयभासाणुपाणमणकम्मे । सुहमा कमावगाहो ऊणूणंगुलअसंखेसो ।। ७६ ॥
शब्दार्थ-एमेव-पूर्वोक्त के सरान, विउव्याहारतेयभासाणपाणमणहम्मे-क्रिय, आहारक, तेजस, माषा, स्वासोच्छ्वास, मन