Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पचम कर्मपत्य
२१ होता है और पाप प्रकृतियों में केवल एकस्थानिक अर्थात् कटुक रूप ही रसबंध होता है। ___ इस प्रकार अनंतानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन कपाय से अशुभ प्रकृतियों में क्रमशः चतुःस्थानिक, त्रिस्थानिक, द्विस्थानिक और एकस्थानिक रसबंध होता है तथा शुभ प्रकृतियों में द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक रसबन्ध होता है।
अनुभाग बंध के चारों प्रकारों के कारण चारों कपायों को बतलाकर अब किस प्रकृति में कितने प्रकार का रसबन्ध होता है, यह स्पष्ट करते हैं। ___ बंधयोग्य १२० प्रकृतियों में ८२ अशुभ प्रकृतियां और ४२ शुभ प्रकृतियां हैं।' इन १२ पाप प्रकृतियों में से अन्तराय कर्म को ५. ज्ञानावरण को केवलज्ञानावरण को छोड़कर शेष ४, दर्शनावरण की केवलदर्शनावरण को छोड़कर चक्षु दर्शनावरण आदि ३, संज्वलन कपाय चतुष्क
और पुरुषवेद इन सत्रह प्रकृतियों में एकस्थानिक, द्विस्थानिक, विस्थानिक और चतुःस्थानिक, इस प्रकार चारों हो प्रकार का रसबंध होता है। क्योंकि ये सत्रह प्रकृतियां देशघातिनी हैं। घाति कौ को जो सर्वघातिनी प्रकृतियां हैं उनके तो सभी स्पर्धक सर्वघाती ही है किन्तु देशघाति प्रकृतियों के कुछ स्पर्धक सर्वघाती होते हैं और कुछ स्पर्धक देशघाती । जो स्पर्धक त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक रस वाले होते हैं १ वणचतुष्क को पुष्य और पाप दोनो रूप होन से दोनों में ब्रहण किया
जाता है । जब उन्हें पुग्न प्रकृतियों में ग्रहण कर तब पर प्रकृति यो में और पाग प्रकृतियों में ग्रहण करें तब पुण्य प्रकृतियों में ग्रहण नहीं करना चाहिये ।
आवरणदेसवादतरायसज लणपुरिस सत्तरमं ।। चदुविधभावपरिणदा तिबिधा भावा तु से साणं ।
-गो० कर्मकांड १८२