Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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इसका सारांश यह है कि साता वेदनीय के जघन्य अनुभाग बन्ध के योग्य परावर्तमान मध्यम परिणाम साता वेदनीय की पन्द्रह कोडाकोड़ी सागर स्थितिबंध से लेकर छठे गुणस्थान में असातावेदनीय के अन्तःकोडाकोड़ी सागर प्रमाण जघन्य स्थिनिबंध तक पाये जाते हैं । परावर्तमान परिणाम लभी तक हो सकते हैं जब तक प्रतिपक्षी प्रकृति का बंध होता है । यानी तब तक साता के साथ असाता वेदनीय का भी बंध संभव है जब तक परावर्तमान परिणाम होते हैं । लेकिन साता वेदनीय के उत्कृष्ट स्थितिबंध से लेकर आगे जो परिणाम होते हैं वे इतने संक्लिष्ट होते हैं कि उनसे असाता वेदनीय का ही बंध हो सकता है । इसीलिये साता और असाता वेदनीय के जघन्य अनुभागवत का स्वामी परावर्तमान मध्यम परिणाम वाले सम्यग्दृष्टि और मिथ्याइष्टि जीवों को बतलाया है । ___ अस्थिर, अशुभ, अयशःकीति की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोड़ी सागर और स्थिर, शुभ, यशःकोर्ति की उत्कृष्ट स्थिति दस कोड़ाकोड़ी सागर बतलाई है । प्रमत्त मुनि अस्थिर, अशुभ, अयशःकीति की अन्ताकोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण जघन्य स्थिति बांधता है और विशुद्धि के कारण फिर इनकी प्रतिपक्षी स्थिर, शुभ, यशकीर्ति का बंध करता है, उसके बाद पुनः अस्थिर आदिक का बंध करता है। इसी प्रकार देशविरति, अविरत सम्यग्दृष्टि, मिनदृष्टि, सासादन, मिथ्यादृष्टि स्थिरादिक के बाद अस्थिरादिक का और अस्थिरादिक के बाद स्थिरादिक का बंध करते हैं। उनमें से मिथ्यादृष्टि इन प्रकृतियों का उक्त प्रकार से तब तक बंध करता है जब तक स्थिरादिक का उत्कृष्ट स्थितिबंध नहीं होता है। सम्यग्दृष्टि और मिथ्याइष्टि के योग्य इन' स्थितिबंधों में ही उक्त प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध होता है । स्पोंकि मिथ्यादृष्ट गुणस्थान में स्थिराविक के उत्कृष्ट स्थितिबंध के