Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
गाथार्थ – एकेन्द्रिय जाति, स्थावर और आतप नामकर्म का उत्कृष्ट अनुभाग बंध मिध्यादृष्टि देव करते हैं। विकलेन्द्रियत्रिक, सूक्ष्मत्रिक, नरकत्रिक, तिर्यचायु और मनुष्यायु का उत्कृष्ट अनुभाग बंध मिथ्यादृष्टि तिर्यच और मनुष्य करते हैं और तियंचद्विक और सेवार्त संहनन का उत्कृष्ट अनुभाग बंध मिथ्यादृष्टि देव और नारक करते हैं।
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विशेवार्थ अनुभाग बंध के दो प्रकार हैं- उत्कृष्ट और जघन्य ! अनुभाग बंध का स्वरूप समझाकर इस गाथा से उत्कृष्ट अनुभाग बंध के स्वामियों का कथन प्रारम्भ किया गया है। चारों गति के जीव कर्मबंध के साथ ही अपनी-अपनी कापायिक परिणति के अनुसार कर्मों में यथायोग्य फलदान शक्ति का निर्माण करते हैं।
बंधयोग्य १२० प्रकृतियों में से किस गति और गुणस्थान वाले जीव उत्कृष्ट अनुभाग बंध करते हैं को बतलाते हुए सर्वप्रथम कहा है कि 'तिब्वमिगथावरायव सुरमिच्छा केन्द्रिय जाति, स्थावर नाम और आप नाम इन तीन प्रकृतियों का मिथ्यादृष्टि देव' उत्कृष्ट अनुभाग बंध करते हैं। मिथ्यादृष्टि देवों को उक्त तीन प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध होने का कारण यह है कि नारक तो मरकर एकेन्द्रिय पर्याय में जन्म नही लेते हैं, अतः उक्त प्रकृति का बंध ही नहीं होता तथा आतप प्रकृति के उत्कृष्ट अनुभाग बंध के लिये जितनी विशुद्धि की आवश्यकता है, उतनी विशुद्धि के होने पर मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय तिर्यंच में जन्म लेने के योग्य अन्य शुभ प्रकृतियों का बंध
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१ ईशान स्वर्ग तक के देवों का यहां ग्रहण करना चाहिये। क्योंकि ईशान स्वर्ग तक के देव ही मरकर एकेन्द्रिय पर्याय में जन्म ले सकते हैं उससे ऊपर के देव एकेन्द्रिय पर्याय धारण नहीं करते हैं ।