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पंचम फर्मप्रस्थ
करते हैं और एकेन्द्रिय तथा स्थावर प्रकृति के उत्कृष्ट अनुभाग बंध के लिये जितने संक्लेश भावों की आवश्यकता है, उतना संक्लेश होने पर वे नरकगति के योग्य अशुभ प्रकृतियों का वध करते हैं । किन्तु देवगति में उत्कृष्ट संक्लेश के होने पर भी नरकगति के योग्य प्रकृतियों का बंध भवस्वभाव से ही नहीं होता है । अतः नारक. मनाम और नियन उक्त तीन प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध नहीं करते हैं, लेकिन ईशान स्वर्ग तक के देव ही उनका उत्कृष्ट अनुभाग बंध करते हैं ।
विकलनिक (हीन्द्रिय, बीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय), सुक्ष्मत्रिक (सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त), नरकत्रिक (नरकगति, नरकानुपूर्वी, नरकायु), तिथंचायु और मनुष्यायु इन ग्यारह प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध मिथ्या दृष्टि तिर्यंच और मनुष्य करते हैं-बिगलसहमनिरयतिगं तिरिमणुयाउ तिरिनरा । इसका कारण यह है कि तिर्यंचायु और मनुप्यायु के सिवाय शेष नौ प्रकृतियों को नारक और देव जन्म से ही नहीं बांधते हैं तथा तिर्यच और मनुज्य आयु का उत्कृष्ट अनुभाग बंध वे ही जीव करते हैं जो मरकर भोगभूमि में जन्म लेते हैं, जिससे देव और नारक इन दो प्रकृतियों का भी उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध नहीं कर सकते हैं। किन्तु उनका उत्कृष्ट अनुभाग बंध मिथ्यादृष्टि मनुष्य और तिथंच ही करते हैं । इसी प्रकार शेष प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग भी अपने-अपने योग्य संक्लेश परिणामों के धारक मिथ्यादृष्टि मनुष्य और तिर्यंन ही करते हैं। अतः उक्त ग्यारह प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध मिथ्याइष्टि मनुष्य और तियंत्रों को होता है । ___'तिरिदुगछेवट सुरनिरिया-तियंचद्विक और सेवात नहनन इन तीन प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध मिथ्या दृष्टि देव और नारक करते हैं। क्योंकि यदि तिर्यंच और मनुष्यों में उतने संक्लिष्ट परिणाम हो तो उनको नरकति के योग्य प्रकृतियों का बंध होता है किन्तु देव