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चम कर्म ग्रन्थ
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नामकर्म का, अपुष्यो--अपूर्वकरण गुणस्थान वाला, अनियट्टीअनिवृत्तिवादर गुणस्थान बाला, पुरिस .. पुरुष वेद, संजलणेसंज्वलन कषाय का।
गाया -आहारकद्धिक का जघन्य अनुभाग बंध अप्रमत्त मुनि करते हैं। दो निद्रा, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय और उपघात नामकर्म का अपूर्वकरण गुणस्थान वाले जघन्य अनुभाग बंध करते हैं और अनिवृत्तिबादर गुणस्थानवर्ती पुरुष वेद, संज्वलन कषाय का जघन्य अनुभाग बंध करते हैं।
विशेषार्थ - इस गाथा में आहारकद्विक आदि प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग बंध के स्वामियों को बतलाते हैं।
सर्वप्रथम आहारकद्विक के बारे में कहते हैं कि 'अपमाइ हारगदुर्ग' आहारकद्विक (आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग) का जघन्य अनुभाग बंध अप्रमत्त मुनि-सात अप्रमत्त संयंत गुणस्थानवर्ती मुनि करते हैं । लेकिन कब करते हैं, इसका स्पष्टीकरण यह है कि आहारकद्विक यह प्रशस्त प्रकृतियां हैं अतः इनका जघन्य अनुभाग बंध अप्रमत्तमुनि उस समय करते हैं जब वे छठे प्रमत्त संयत गुणस्थान के अभिमुख होते हैं । यानि सातवें गुणस्थान में छठे गुणस्थान की ओर अवरोहण करने की स्थिति में होते हैं तब उनके परिणाम संक्लिष्ट होते हैं और उस स्थिति में आहारकद्विक का जघन्य अनुभाग बंध करते हैं।
निद्राद्विक (निद्रा और प्रचला), अशुभ वर्णचतुष्क, (अशुभ वर्ण, अशुभ गंध, अशुभ रस, अशुभ स्पर्स) तथा हास्य, रति, जुगुप्सा, भय और उपघात, इन ग्यारह प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध अपूर्वकरण गुणस्थानवाले तथा पुरुष वेद और संज्वलन कषाय का जघन्य अनुभाग बंध अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान वाले करते हैं। यहाँ ये दोनों