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गुणस्थान क्षपक श्रोणि के लेना चाहिये। क्योंकि निद्रा आदि अशुभ प्रकृतियां हैं और अशुभ प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध विशुद्ध परिणामों से होता है और उनके बंधकों में क्षपक अपूर्वकरण तथा क्षपक अनिवृत्तिबादरसं पराय गुणस्थान वाले जीव ही विशेष विशुद्ध होते हैं। इन प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध अपनी-अपनी व्युच्छित्ति के समय होता है ।
विग्धावरणे सुमो मणुतिरिया सुडुमविगलतिगआऊ । वेक्किममरा तिश्या उज्जोय उरलदुगं ॥ ७१ ॥
शब्दार्थ - विग्घावरण पांच अंतराय और नौ आवरण ( ज्ञान दर्शन के) का सुमो सूक्ष्मसंपराय वाला, मणुतिरिया मनुष्य और तिथेच सुहमविगलतिगसूक्ष्मत्रिक, विफलत्रिक, आळ चार आयु का, बेगुस्विछक्कं क्रियट्क का अमरा - देव, निरय - नारक, उज्जीय उद्योत नामकर्म का उरलदुर्ग - औदारिकद्विकका ।
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शक्षक
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गाथायें - पांच अंतराय तथा पांच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण का जघन्य अनुभाग बंध सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान वाला करता है। मनुष्य और तिथंच सूक्ष्मत्रिक, विकलत्रिक, चार आयु और वैक्रियषट्क का जधन्य अनुभाग बंध तथा उद्योत नामकर्म एवं औदारिकद्विक का जघन्य अनुभाग बंध देव तथा नारक करते हैं ।
विशेषार्थविग्वावरणे सुहमो' अंतराय कर्म की पांच प्रकृतियों (दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य अन्तराय), मतिज्ञानावरण आदि ज्ञानावरण की पांच प्रकृतियों तथा चक्षुदर्शनावरण आदि दर्शनावरण को चार प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध सूक्ष्मसंपराय नामक